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मनसुख जी, आपकी तरह देश भक्त की डिग्री मिल जाती तो बहुत मेहरबानी होती। मान्यता मिलने के बाद तनसुख भी कुछ बोलता। तनसुख को डिग्री दिलवा दीजिये प्लीज। उसके कैरियर का सवाल है। वैसे आप बहुत बड़े विचारक हैं। गांधीवादी, समाजवादी हैं। आपको रातों-रात डिग्री मिल गयी। तनसुख ठहरा कमबख्त मूरख। लेकिन आप पैरवी करेंगे तो आज कल लोकतंत्र में अगूंठे छाप लीडरों की ही तो चलती, बनती है। वह भी मेहनत करेगा। नहीं तो रातों रात वो आपकी तरह नेता नहीं बन सकेगा। तनसुख ने अपने बायोडाटा में भी लिखा है। उसे डिग्री मिल जायेगी तो वो भी कुछ बोलेगा। आपने गुजरात व बिहार के ग्राम सुधार को सराहा, अनुकरणीय ठहराया है। तनसुख बिहार से अभी-अभी लौट के आया है। खासकर ग्रामीण परिवेश से। वह बहुत दु:खी है। वहां मुख्य सड़कों के किनारे बेशर्मी की हद है। महिलायें व बच्चे खुले में शौच करते हैं खुलेआम। उस मुख्य सड़क से पैदल तो दूर वाहनों से भी गुजरना बदबू के कारण असहनीय है। कहने पर महिलायें व बच्चे काटने को दौड़ते हैं। गाली-गलौच करने पर उतारू हो जाते हैं। तनसुख वह सब भोग के आया है। तनसुख ने कुछ बोला ही था कि उसका स्वागत नव-नव गालियों से हुआ। बच्चे व महिलाओं ने मुंह नोंच लिये। मनसुख जी माफ कीजियेगा। ग्राम सुधार पर तो तनसुख कुछ भी बोलने को तैयार नहीं। वंशवाद पर अपने योग गुरु भड़क उठे हैं। उनका भड़कना स्वभाविक है। कल तलक भ्रष्टाचार के खिलाफ वही लोम-विलोम करवा रहे थे। अचानक आप कपालभाती करवाने लगे। 97 घंटे में 44 लाख फोलोवर। आपके मंच पर भी वे टोह लेने गये। आपको लगा वे आपके प्रशंसक, समर्थक हैं लेकिन ये देश ही ऐसा है मनसुख जी। यहां कोई किसी का प्रशंसक नहीं होता। आप भी गच्चा खा गये। बाप-बेटे के मोहपाश में उन्हें वंशवाद की बू आने लगी। इसके बाद भी आप डटे हैं। आपको लग रहा है कि जनपाल लागू हो जायेगा। नहीं होगा तो फिर आप जनता को फिर भड़कायेंगे लेकिन इस बार भड़कना थोड़ा मुश्किल दिख रहा है। माफ कीजियेगा। ऐसे में तनसुख वंशवाद पर भी कुछ बोलने को तैयार नहीं। बस हर वक्त डिग्री की रट लगाये बैठा है। एक डिग्री तनसुख को भी दे दीजिये। आपका अपना तनसुख दिल पर हाथ रखकर कहेगा आल इज वेल। पूरा चमचा है आपका। वैसे भी आपके 44 लाख प्रशंसक दिल पर हाथ रखकर कहेंगे क्या कि आल इज वेल। शायद नहीं। बईमान से बईमान आदमी भी देश की तरक्की चाहता है।
तीन थे भाई। तीनों जेड श्रेणी के बईमान। तीनों ने सोचा। अलग-अलग रहेंगे समाज कमजोर कर देगा। साथ रहकर बईमानी करेंगे पूरा देश अपना। तरक्की ही तरक्की। सो, तीनों ने एक ही लड़की से शादी भी करने की सोची। तीनों ने बईमानी से शादी कर ली। नौवें महीने बईमानी ने एक सुंदर पुत्र को पैदा किया। पुत्र जन्म लेते ही ठहाका मार कर हंस पड़ा। तीनों भाई हतप्रभ। इसको तो अभी रोना चाहिये और ये हंस रहा है। बेटे ने बापों की करतूतें जान ली। कहा-तुम तीनों को बाप कहते मुझे शर्म आती है। अरे बईमानों बईमानी भी करते हो तो घटिया किस्म का। मुझे देखना। बेटा बड़ा होकर कफन चोर निकला। शमशान से मुर्दों की कफन उठा लाता। उस कफन चोर का नाम पूरे कस्बे में फैल गया। धीरे-धीरे उस नगर का नाम ही कफन चोर पड़ गया। उस नगर में रहने वाले शर्म से पानी-पानी हो रहे थे। वो कफन चोर बूढ़ा हो चला। अपने तीन लड़कों को उसने बुलाकर कहा-बेटा। जिंदगी भर मैंने गलत काम किये। बईमानी की। तुम लोगों से एक आग्रह है। मेरे मरने के बाद कोई ऐसा काम करना जिससे मेरा नाम गर्व से ऊपर, रोशन हो उठे। बाप के मरने के बाद तीनों भाई सोच में पड़ गये। क्या किया जाये जिससे बाप का नाम रोशन हो सके। छोटू ने कहा- भाई लोग आप नाहक में परेशान हो रहे हैं मेरे पास एक झटका आइडिया है। क्या है-दोनों भाई ने उत्सुकता से पूछा। छोटू ने कहा-कल सुबह खुद देख लेना। अहले सुबह गांव में हंगामा हो गया। एक आदमी की मौत बीती रात हो गयी थी। परिजन उसके शव को शमशान में दफना के आ गये थे। सुबह-सुबह उसी का शव उसके दरवाजे के बाहर पड़ा था। यही सिलसिला चल पड़ा। हर दिन कोई मरता दूसरे दिन उसकी लाश उसके घर के बाहर पड़ी मिलती। अब तो चारों ओर सबके सब कहने लगे इससे तो बढिय़ा उसका बाप था बेचारा कफन चोर। तीनों भाई खुश थे। बाप का नाम रोशन कर सब पुत्र होने का फर्ज निभा रहे थे। कहानी सुनाने का मतलब मनसुख जी आप समझ ही रहे होंगे। रातों-रात स्टार बना दीजिये। जैसे आप बने और वो कफन चोर का बेटा बना। सबके साथ तनसुख भी रातों-रात स्टार बनेगा। कुछ बोलेगा। उसका बायोडाटा देखिये। उससे योग्य कोई दूसरा कहां। मनसुख जी आपको सोनिया मैडम ने अधीर नहीं होने की सलाह दी है। आपकी उम्र अब वो नहीं है कि इस नाचीज देश के लिये सख्त पत्र लिखे। देखिये मैडम को, पत्र का जवाब शालीन भाषा में देकर उसने आपके आंदोलन के औचित्य पर सवाल खड़ा कर दिया है। इससे पहले भी वो आपको चित कर चुकी है। भला तनसुख से ये सब कैसे देखा जायेगा। मेरा बायोडाटा देखिये। बतौर शपथ पत्र बायोडाटा में मैंने लिखा है। निजी व सामाजिक चरित्र मेरा एक होगा। देश में अव्यवस्था, कुव्यवस्था, भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार, नजराना, हर्जाना, शुक्राना और पतन के लिये यह व्यवस्था या नेता जिम्मेदार नहीं होंगे। हम भी देश के नागरिक हैं। हमारा जीवन दोहरे मापदंडों से अब नहीं भरा रहेगा। ताकतवर के सामने शुक्राना, समर्पण-दंडवत, नतमस्तक और कमजोर, शोषित व प्रताडि़त के सामने बाघ। कानून नहीं मानने वाले कथनी व बातों में आदर्श झाडऩे वाले, करनी में ठीक विपरीत, उलटा, ये दोहरा चारित्रिक गुण नहीं चलेगा। हमारा दिल विशाल भारत की तरह दयालु होना चाहिये जो खुद अंधेरे में रहकर भी इस्लामाबाद को बिजली देने का न्योता देता हो। मैं कोई गांधी नहीं हूं मनसुख जी। आम आदमी हूं। मेरा एक हाथ रिक्शा खींचता है तो दूसरा खेतों में कुदाल चलाता है। मेरे एक पांव पगडंडियों पर चलते हैं तो दूसरा चिकनी सड़कों पर उड़ता है। मेरे एक आंख गंदगियों को निहारता है तो दूसरा सौंदर्य को सराहता है। मैं एक नाक से विषाक्त हवा तो दूसरे से खुशबू का आनंद ले रहा हूं। मेरे एक कान संतुष्टों, ईमानदार लोगों के शांत विचारों से रसास्वादित हो रहे हैं तो दूसरे से मुझे बईमानी, हत्या, चोरी, डकैती, बलात्कार के चीखें सुनाई पड़ रही है। मेरा मस्तिष्क द्वंद्व में है। दुविधा में है। वो भ्रष्टाचार इस अराजक माहौल के खिलाफ जंग छेडऩा चाहते हैं लेकिन मेरे अंग मेरे साथ नहीं हैं। मुझसे यह अराजकता, आर्थिक अवनति, भ्रष्टाचार की ओर तेजी से लुढ़कता देश देखा नहीं जा रहा है। बस, एक बार गांधीवादी, राष्ट्रवादी, समाजवादी की डिग्री दिला दीजिये फिर देखिये रातों रात।
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