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सत्य साई भारत देश के भगवान या उसके अवतार है। इस भगवान के पास 40 हजार करोड़ से अधिक की संपति है। भगवान के उत्तराधिकारी की तलाश हो रही है। हम-आप कोई भी जो उनके चाहने वाले हैं, भक्त हैं उस गद्दी के स्वामी हो सकते हैं। फिलहाल सिंहासन खाली है। वैसे इनके परिवार के लोग अधिकार की मांग कर रहे हैं। इधर, आश्रम से लेकर हर तरफ भक्त गोरखधंधे में जुटे हैं। ट्रक में लादकर आश्रम से सोना बाहर भेजा जा रहा है। देवन हल्ली हवाई अड्डे से दो ब्रीफकेसों में आभूषण पकड़े जा रहे हैं। अचानक, भगवान के मरने के बाद ये सब क्यों होने लगा। वे तो भगवान थे। भूत, वर्तमान, भविष्य को परखने वाले। फिर ये अराजकता का माहौल। ऐसा तो नहीं कि हम भगवान को समझने में भूल कर गये। यह देश ऐसा ही है। यहां भगवान शब्द को ही गलत परिभाषित कर हम दिन रात स्वार्थ में जुटे, लिप्त हैं। भगवान भला करेगा कुछ दे दो। भगवान के नाम पर ऐसा मत कहो। भगवान कसम। मुझ गरीब पर भी कुछ भगवान के नाम पर दया करो। भगवान करे ऐसा न हो। यानी बात-बात पर भगवान। मगर सच यही है कि मानव रूपी शरीर लेकर न तो तू भगवान हो सकता है ना ही उसका कोई अवतार। जो लोग तूझे भगवान समझ रहे हैं। दर्जा दे रहे हैं वो ईश्वर को नहीं जानने की भूल, गलती जानबूझकर कर रहे हैं। स्वार्थ लिप्तता, एक अलग पहचान। हाथ-गले में अलग लाकेट व बैल्ट लगाने वाले भी जानते हैं कि हर दिल में ईश्वर का वास है। आम इंसान के वेश में कोई खुद को भगवान सरीखा कहे यह सर्व पाच्य नहीं है। भगवान कभी वास्तु दोष के कारण नहीं मरता। देश से लेकर विदेशों में शाखा नहीं खोलता। आभूषणों की ढ़ेर नहीं लगाता। अकूत संपत्ति का स्वामी बनकर भक्तों के बीच अवतारी पुरुष नहीं बना रहता। क्या इस देश में श्रीकृष्ण-श्रीराम का कोई उत्तराधिकारी है या हुआ है? आस्था, धर्म का जितना मजाक उड़ाना हो सीख लो इस इंडिया से। यहां कभी गणेश तुम्हें दूध पीते मिलेंगे तो कभी हनुमान लड्डू खाते। यह धरती ही ऐसी है। यहां गरीबी पर लोग हंसते हैं। भूखे-प्यासे नंगे बच्चे, लाचार बूढ़ी औरत दो पैसे मांगती दुतकारी जाती है लेकिन यज्ञ के आडम्बर पर यहां लाखों खर्चे जाते हैं। यहां एक वर्ग विशेष को भक्त बना लेना व अंधी कमाई करना आसान है। प्रज्ञा ठाकुर के भी भक्त इसी देश में हैं। स्वामी नित्यानंद को भी कभी भक्तों की कमी नहीं रही। आशाराम बापू के भी आश्रम हैं जहां नैतिकता की लिबास में अनैतिक कार्यों की लंबी सूची है। बाबा रामदेव बाजार के सबसे बड़े उत्पादक हैं। वे बाजारवाद के हिस्सा हैं। उत्पाद के सहारे उनकी धाक है। हिंदुस्तान लीवर सरीखे उत्पादकों से भी ज्यादा प्रोडक्ट पतंजलि की दुकानों में बिक रहे हैं। दांत साफ करने से लेकर साबुन, सरसों, नारियल तेल, आटा, बेसन सब बेचते हैं बाबा। बाबा रामदेव का मतलब ही एक ब्रांड है। इसमें किसी का दोष नहीं। यह देश ही ऐसा है। यहां धर्म के नाम पर लोग लड़ते हैं। बाबरी-रामजन्म भूमि, दोधरा कांड के नाम पर स्वार्थ की रोटी सेंकी जाती है। मासूम, निर्दोष खून बहाते हैं और गांधी टोपी वाले धर्मनिरपेक्ष देश की दुहाई देकर गर्व करते हैं। यही से एक रास्ता फूटता है। अल्लाह और भगवान के बीच का मार्ग। इस मार्ग पर चलकर कुछ लोग ऐसे ही एक नया भगवान खड़ा कर लेते हैं जिनकी मौत के बाद शुरू होती है आश्रम से लेकर हवाई अड्डे तक हेरा-फेरी का खेल। हमें भूलना नहीं चाहिये कि ऐसे भगवान खड़ा करने वालों की एक अलग दुनिया, एक अलग पहचान है जिन्हें किसी सही भगवान की जरूरत नहीं पड़ती। पैसे, ग्लैमर की एक चकाचौंध दुनिया जिसमें वो आंसू भी बहाते हैं। भ्रम में भी जीते हैं। वहीं भ्रम जो उन्हें सत्य साई ने दिखाया था। वो भविष्यवाणी जिसमें बाबा ने 96 साल तक जीने की बात कही थी लेकिन सही भगवान ने उन्हें 85 साल में ही बुलावा भेजवा दिया। जो भक्त चमत्कार की आस में बैठे थे उन्हें ऊपर वाला कोई चमत्कार देखने का मौका नहीं दिया। अब लाखों भक्तों के दान से खड़े हजारों करोड़ की संपति के स्वामी सेंट्रल ट्रस्ट की कमान जिसके हाथ होगी वही एक नया भगवान बन खड़ा होगा। यह देश ऐसा ही है सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा।
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