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आई एम दुष्कर्मी

sach mano to
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जरा सोचिये। अभी-अभी फिर एक लड़की बलात्कार की शिकार हुई है। वह रो रही है। उसके सामने असंख्य प्रश्न मौन, बूत बने खड़े हैं। वह लड़की आगे चलकर कैसी पत्नी बनेगी। कैसी मां बनती होगी बड़ी होकर ऐसी लड़की। ैकैसे स्कूलों में कदम रखेगी ऐसी लड़की। अपने हम उम्र से क्या बात करेगी ऐसी लड़की। वह रातों को सोये में क्या सपना संजोयेगी। दिन के उजाले में किसके चेहरे को टटोलेगी, निहारेगी। अपने देश में हर वक्त, हर हमेशा इतने ज्यादे अन्याय होने लगे हैं कि संवेदनशील आदमी भी अन्यायों पर बोलना, उसके बारे में पढऩा, सुनना भी नहीं चाहता। हर आदमी आज तमाशाई हो गया है। खासकर, सेक्स व बलात्कार के मामले में। समाज उसे नंगी आंखों से देखता, परोसता, महसूसता हर दिन है लेकिन मौन एक मूक दर्शक बनकर। कुछ बोलने से परहेज, कुछ सोचने से तौबा। उस परिवार, उस लड़की के जीवन, घुटन को सीने में बलात छुपाये रखने की जद्दोजहद के बीच। किसी भी आपराधिक घटनाओं को अंजाम देना आसान काम नहीं है। लेकिन जरा बलात्कार की घटना के बारे में सोचिये। यह रिवाल्वर व चाकू से किसी के मर्डर से ज्यादा भयानक व क्रूर ही नहीं है बल्कि इसकी प्रक्रिया से गुजरना आसान नहीं। पत्नी की रजामंदी के बगैर उससे सेक्स संबंध बनाना महज एक सामान्य आदमी के लिये सहज नहीं होता। बलात्कार की घटना को अंजाम देने वाले कहीं न कहीं से अतिरिक्त फोर्स जरूर रखते हैं जिसकी ताकत से वह किसी महिला या लड़की को हवस का शिकार बना लेते हैं। चोरी, डकैती व हत्या से भी ज्यादा टफ ये बलात्कार की घटनाओं को आज हर मोड़ पर खुलेआम अंजाम दिया जा रहा है। बाजारवाद का अहम हिस्सा आम आदमी है। इस बाजार ने भी खोज निकाला है महिलाओं पर हिंसा का अनोखा मजेदार खेल जिससे धृणित तरीका दूसरा कोई हो ही नहीं सकता। बच्चों, किशोरों की पीढ़ी को विकृत यौनकुत्सा में धकेलने वाला तरह-तरह के वीडियो गेम बाजार में बिक रहे हैं जो औरतों को सेक्स के लक्ष्य के रूप में पेश कर रहे हैं। विदेशों से पहुंच रहे ये खिलौने बच्चों के साथ उनके घरों में भी सुरक्षित स्थान बना लिया है। बच्चों में यौनकुंठा व अपराध की सीख देते ये खिलौने सेक्स को बहुत आसानी से परोस रहे हैं। बलात्कार की घटनायें, सेक्स की चटपटी बातें अब चटकारे की भी बात नहीं रही। यह हमारे दिनचर्या में शामिल है। हम सुकून में हैं आराम में हैं। कोई भी सार्थक सोच, एक माकूल हथियार हम आज तक खड़ा नहीं कर पाये इस अपराध, बलात्कार के खिलाफ। बच्चे घरों में ही यौनविकृति के शिकार हो रहे हैं। कामकाजी महिलायें बस स्टैंड पर दफ्तर में कहीं गलियों में रिक्शा, बस में हवस की शिकार हो रही हैं। घरेलू महिलायें फुटपाथ पर रोने को विवश है तो मासूम बच्चियां जो सही से चलना भी नहीं जानती, बोलना भी नहीं जानती अस्पताल के बिस्तरों पर सिसकती, लेटी मिलती है। महिलाओं व पूरी मानव सभ्यता के खिलाफ जो सबसे धृणित, कलंकित अपराध है वह कहीं वीडियो गेम का हिस्सा है तो कहीं राजनेताओं, अभिनेताओं, अय्याश हाकिमों तो कहीं आम इंसान की क्षणिक कलयुगी आवेग का शिकार जो पूरी जिंदगी की लहू को सफेद कर देता है। एक फिल्म आयी थी जख्मी औरत। बलात्कारियों के खिलाफ लड़ती औरतें। समाज को एक संदेश देती। अब दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने सांसदों को सलाह दी है। दुष्कर्म व यौन उत्पीडऩ की घटनाओं के खिलाफ शल्य चिकित्सा या रसायनों के जरिये बंध्याकरण जैसी वैकल्पिक सजा की संभावना तलाशने की। एक युवक अपनी नाबालिग सौतेली बेटी से दुष्कर्म के मामले में दस साल की सजा सुनता है। बेटियों पर पिताओं द्वारा लगातार वर्षों तक यौन शोषण या दुष्कर्म के बारे में खबरें आती ही रहती है। सोचिये, उस परिवार उस लड़की के बारे में। कैसे जिंदगी जीती होगी उस घर में वह लड़की। वह आगे चलकर क्या बनेगी। उसकी भूमिका समाज में किस रूप में निर्धारित हम करेंगे। इस घुटन से निकलने की राह कहां से निकलेगी। कोई रोशनी कहीं से आयेगी भी। कई मामले हैं जहां पत्नी बलात्कारी पतियों का साथ देते दिखती है। एसपी एस राठौड़, शाइनी आहूजा, पूर्व महानिरीक्षक रविकांत शर्मा खुशनसीब बलात्कारी हैं जिनका साथ उनकी धर्म पत्नी दे रही हैं। दिल्ली की अदालत ने बंध्याकरण को दुष्कर्म के मामले में एक बेहतर सजा का विकल्प माना है लेकिन यह महज विकल्प ही है कोई ठोस आधार, पहल नहीं। इस विकल्प से रोती-रूकी जिंदगी को रफ्तार, सुर्ख मुस्कान मिल जाये ये संभव नहीं। क्या हमें ऐसा नहीं लगता कि हम समाज में औरतों की चीख, जख्मी शरीर को देख खुश हैं कहीं ऐसा तो नहीं कि हम कल होकर ऐसा सोचने लगें कि कहीं हम खुद तो दुष्कर्मी नहीं। जरा सोचिये, क्या आप भी हो सकते हैं- आई एम दुष्कर्मी

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