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40 मिनट का शोले

sach mano to
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40 मिनट की यह एक बेहतरीन फुल ऑफ एक्शन, थ्रीलर स्क्रिप्ट है। अमेरिका ने इसे बढिय़ा सिनेमेटोग्राफी तरीके से पेश किया है। इसमें एक नायक है दूसरा सुपरहिट खलनायक। रोमांच, सस्पेंस को बनाये रखने के लिये नायिका भी है जिसे अंत में खलनायक अपनी जिंदगी बचाने के लिये मोहरा बनाता है लेकिन अंत बिल्कुल भारतीय सिनेमा स्टाइल में। खलनायक मारा जाता है और हीरो पूरे विश्व का नायक बन जाता है।मसाले से भरपूर बढिय़ा सोची-समझी सफल पटकथा तैयार की है अमेरिका ने। जिसे पूरे विश्व में एक साथ प्रसारण कर उसने साबित कर दिया कि वह जो चाहेगा, उसकी मर्जी। वो जो परोसेगा वह सच के सिवा कुछ नहीं होगा। महज सोचिये। 40 मिनट का खेल। यानी कुल 2400 सेकेंड का समय। दो हेलीकाप्टर लादेन के मकान पर मंडराते हैं। अमेरिकी सैनिक मकान के छत से नीचे उतरते हैं। मोरचा लेते हैं। लादेन के सुरक्षाकर्मियों से मुठभेड़ होती है। तीन सुरक्षाकर्मी मौत के घाट उतार दिये जाते हैं। लादेन के तीन-चार परिजन मारे जाते हैं। अंदर लादेन को पहले बंधक बनाने की कोशिश। फिर एक महिला को ढ़ाल बनाता बीमार लादेन। इसी बीच कुछ संवाद। अमेरिकी सैनिक लादेन पर गोलियां चलाते हैं। लादेन का शव पड़ा है। बाहर एक हेलीकाप्टर का तेज आवाज के साथ विस्फोट करना। पूरे पटकथा को आगे बढ़ाता। अमेरिकी सैनिक लादेन की तस्वीर लेते हैं। उधर, ओबामा जो पूरे कहानी का नायक है व्हाइट हाउस के सिचुएशन रूम में बैठा सब कुछ लाइव देख रहा है। यानी, सैनिकों के बीच कोई एक है जो कैमरामैन की भूमिका लाइव निभा रहा है। लादेन के शव की पहचान फेशियल रिकॉग्निशन साफ्टवेयर से की जाती है जिसमें बताया जाता है कि वह 95 फीसदी लादेन ही है। इसके बाद शव का डीएनए टेस्ट होता है। फिर, उस सैनिकों में से कोई एक चिकित्सक की भूमिका सरीखे में है। डीएनए का सेम्पुल अमेरिका पहुंचता है। लादेन की बहन की डीएनए से उसकी मैच करायी जाती है और तब कहा जाता है जेरोनिमो ईकेआईए। यानी लादेन मारा जाता है। इसकी पुष्टि होती है। अमेरिकी सैनिक लादेन के शव को ले जाने की तैयारी करते हैं। हेलीकाप्टर आता है। उसपर लादेन के शव को लादा जा रहा है। अंतिम क्रिया के लिये लादेन के शव को नहलाया जा रहा है। सफेद कपड़े में लपेटकर उसे अमेरिकी अधिकारी द्वारा तैयार धार्मिक पंक्तियों जिसे एक स्थानीय वक्ता ने अरबी में अनुवाद किया था, का पाठ कर एक पटरी समुद्र में उतरता है जिसपर लादेन का शव है। यह सब महज 40 मिनट में। यह सुपरहिट स्क्रिप्ट तैयार किया था ओबामा के सलीम-जावेद ने जिसे आज पूरे विश्व में सराहना हो रही है। लादेन के मरने का पूरा तामझाम प्रचार के साथ दुनिया के टेलीविजनों पर प्रसारण चल रहा है। अमेरिका खुद की पीठ थपथपाता भले ही नजर आ रहा हो लेकिन दर्शकों को इसकी दादागिरी पच, हजम नहीं हो रही। आखिर माना कि वह सर्वशक्तिमान है। उन्नत तकनीक से वह लैस है। लेकिन समय की रफ्तार को पकडऩे की हिम्मत, थामने की ताकत उसके पास न था न कभी होगा। उसने 40 मिनट की एक कहानी बना ली आपरेशन लादेन। क्या 40 मिनट में यह सब कुछ संभव है? सोचिये, ओबामा प्रशासन को पहले से ही भान था कि वह मुसलमानों की नाराजगी झेल सकता है। जिंदा पकड़कर लादेन को वह बड़ी मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता था। मुठभेड़ में मौत दिखला नहीं सकता था। कारण, जो लादेन वर्षों से डायलिसिस पर पड़ा हो वह भला बंदूक क्या थामता। लिहाजा, एक महिला को सामने लाकर उसे लादेन की नायिका यानी बीवी बताकर अमेरिका ने एक चाल चली। जो अमेरिका शक्ति से भरपूर शक्तिशाली है। जिसे विश्व मानवाधिकार की चिंता नहीं। दूसरे यानी पाक की संप्रभुता की जिसे परवाह नहीं। जो कानून को तोडऩा जानता हो। उसके सामने कमजोर, लाचार चारों ओर से सैनिकों से घिरे लादेन की बीवी क्या चीज थी जिसे दूर पटका नहीं जा सका और लादेन को जिंदा पकड़कर विश्व के सामने लाने की अमेरिका जोखिम नहीं उठा सका। साफ है, यह तो स्क्रिप्ट का हिस्सा था नहीं। पटकथा के मुताबिक पूरा पाक शांति की आगोश में सोया रहेगा और खलनायक के सिर में गोली मार दी जायेगी। कहीं ऐसा तो नहीं कि लादेन पहले ही मारा जा चुका हो और अमेरिका उसे एक मई को घोषित कर रहा हो, कारण एक मई की तारीख अमेरिका ने दुश्मनों के लिये मुकर्रर कर रखी है। अब तक अमेरिका कई सुपरहिट कारनामें एक मई को कर चुका है। उसका असली दुश्मन हिटलर भी उसी दिन मारा गया था। एक प्रश्न, आखिर लादेन कितनी बार मरेगा। इससे पहले भी वह मारा जा चुका है। पाक ने इसकी पुष्टि भी की है। आज उसी पाक को लोग आतंकी पोषक के रूप में देख रहे हैं। सोचनीय है कि पाक अमेरिका के हाथों गिरवी है। अमेरिकी कर्ज में आकंठ उसके पास बोलने के लिये शब्द कहां से आये। वह मौन खड़ा है। जरदारी, रहमानी सबके सब चुप, खामोश हैं। भला इस स्क्रिप्ट में उन्हें जो भूमिका निर्माता, निर्देशक ने तय की है उसे वो दोनों निभा रहे हैं। अब पाक को मौत की सजा मिले या रहम की फिर भीख वो सब कुछ कबूल करेगा। सोचने का काम तो भारत के जिम्मे हैं। एक कसाब को पाल ही रखा है और भी कोई जख्म मिले उसे भी वह सह लेगा खुशी-खुशी अपनों की जान गंवाकर।

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