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बिकनी, पानी पूरी और रागिनी का एमएमएस

sach mano to
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देशभक्तों तुम्हारी त्रासदी यह है कि तुम जो नष्ट करोगे वह और भी जिंदा होगा, फलेगा, बढ़ेगा। दो अलग-अलग दिशाओं में दौड़ते लोग आज सांस्कृतिक लक्ष्य को तराशने उसे संवारने, संजोने की पंगत में खड़े नहीं दिख रहे। मानव का स्वभाव आज लाचार, हताश स्थिति में है। मानव होने का फर्ज कोई भी निभाने को तैयार नहीं। मानवता को शर्मसार कर मजा लेने वाले तमाशाई घर-घर में है। हम हंसी के पात्र बनकर समाज के बीच जीना चाहते हैं। लोग हम पर हंसे हमारा उपवास उड़ाये। भले उस समाज के आगे हमें मुंह छुपाकर ही क्यों न गुजरना पड़े। पर मजाल नहीं कि हम अपनी हरकत में सुधार लाने की सोचे भी। हमारा दिखावा मर्यादित,सुसंस्कृत व शिक्षित दिखे इसकी बजाय उसे अश्लीलता के कलेवर में परोसना, संजोना ही हमारी पंसद में शामिल है। चाहे बात बिकनी की हो, पानी पूरी की या फिर रागिनी एमएएमएस की। हर जगह हम समाज के आगे बेबस, लाचार, नंगे खड़े हैं। हमारा मनोबल समाज को आगे बढ़ाने वाला नहीं बल्कि उसे तोडऩे की भूमिका में है। मनुष्य के तीन जरूरीयातों में रोटी, कपड़ा व मकान आदिकाल से सर्वोपरि है। इसमें से दो यानी रोटी व कपड़ा हमारे सामने शर्मसार है। शर्म की रोटी खाकर व बेशर्मी का वस्त्र पहनकर हम किस छत के नीचे रहेंगे इसकी तलाश करना हम जरूरी नहीं समझते। आस्ट्रेलिया में फैशन वीक के दौरान एक माडल ने देवी लक्ष्मी की तस्वीर वाली बिकनी पहन कर रैप पर कैटवाक किया। अब जो धर्म के पहरुए हैं जो धर्म, आस्था को ही परोस कर उसे बिछाकर, ओढ़कर उसी की आड़ में रोटी खा व सेंक रहे हैं वो तो हाय-तौबा मचायेंगे ही। लिहाजा, अयोध्या के धर्म ठेकेदारों ने दिल्ली में आंदोलन की धमकी दी है। इतना ही नहीं मर्यादा पुरुषोतम राम के नाम पर चल रहे राम जन्म भूमि न्यास परिषद भी इससे सहमत इसे संस्कृति का अपमान बता रहे हैं। दरअसल, देवी-देवताओं के साथ मजाक, उसे हंसी का पात्र, फूहड़ता के रूप में परोसना हमारी पुरानी आदत है जो आज हमारी संस्कृति में शुमार उसका अंग है। अब हम मर्यादा की नहीं अमर्यादित होने की तालीम ही आस-परोस में बांट व सीख रहे हैं। कभी चप्पल पर गणेश को हमने ही धारण किया। कभी हमारे संस्कृतिकर्मी,चित्रकार हुसैन ने सरस्वती की नग्न तस्वीर हमें दिखायी। हमारे सिनेमा उद्योग के नामचीन लोग हमें हर रोज घर से लेकर बाहर तक नग्नता ही दिखा, परोस रहे हैं। स्कूलों में बच्चों की हरकत से हमारी आंखें हर रोज झुक रही है। चुंबन से ही बच्चे आज एक दूसरे का अभिवादन कर रहे हैं। बच्चों खासकर लड़कियों की वेश-भूषा पर अभिभावक मौन खड़े हैं। फूहड़ कपड़े जिसके बीच से मर्यादा कहीं सुरक्षित नहीं, खुद अभिभावकों की ही देन है। मानवता हर जगह शर्मसार है। चंद रुपयों की खातिर आदमी नैतिकता, समाजिकता तो दूर किसी के भी जीवन से खेलने से बाज नहीं आ रहा। पानी पूरी। बच्चों की पहली पंसद, महिलाओं की दूसरी व पुरुषों की तीसरी। पानी पूरी बेचने वालों के आगे की भीड़। लेकिन आपको अगर यह मालूम पड़े कि जिस पानी पूरी वाले के यहां से आपके बच्चे अभी-अभी पानी पूरी खा कर लौटे हैं उस पानी में पेशाब था। तो आप क्या करेंगे। दुकानदार को मारने दौड़ेगे। उसे अपने मोहल्ले के नुक्कड़ से भगायेंगे या फिर पुलिस को खबर करेंगे। जो भी हो आप-हम कुछ न कुछ सबक सीखाने की तरकीब जरूर निकालेंगे, सोचेंगे। मगर ऐसा कतई नहीं हो रहा है। मुंबई के एक पानी पूरी वाले ने इसी तरह की हरकत कर संवेदनाओं को झकझोर दिया है। वह हर दिन पेशाब पानी पूरी में मिलाकर बेचता था। सचमुच, यह घृणात्मक कृत्य, कार्य सोचनीय है। जो न सिर्फ नैतिकता के खिलाफ शर्मनाक है बल्कि स्वास्थ्य के साथ भयानक खिलवाड़ भी। ऐसे में भाजपा जैसी सुशिक्षित पार्टी इसका विरोध जताने, इस पर कुछ बोलने व प्रतिरोध करने के उस हिम्मती युवती को आड़े हाथों लेते न सिर्फ अमर्यादित टिप्पणी सरेआम की बल्कि उस युवती को वेश्या या रेड लाइट एरिया की किसी महिला से भी घटिया मानसिकता वाली करार दिया। यह पूरे महिला बिरादरी को ही न सिर्फ कलंकित, अपमानित करने वाली हरकत है बल्कि उस साहस, पराक्रम व हिम्मती युवती को कटघरे में खड़ा कर पूरे समाज को नंगा कर देने की स्थिति, मनोदशा का परिचायक है। वह युवती जिसने उस दुकानदार को पानी पूरी में पेशाब मिलाते तस्वीर पूरी दुनिया के आगे परोसी, आंख खोलने का कार्य किया उसकी बहादुरी को सलाम करने के एवज में हम उसे वेश्या के कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। दिल्ली की एक लड़की दीपिका की जिंदगी पर बनी फिल्म रागिनी एमएमएस एक अलग विवाद लिये हमारे सामने अनगिनत प्रश्न लिये खड़ा है। बहुचर्चित एमएमएस कांड पर बनी यह फिल्म कुछ अतरंग दृश्यों के चलते भले ही विवादास्पद हो पर सोचनीय यह है कि उस लड़की का ब्वायफ्रेंड चोरी-छिपे अतरंग क्षणों को कैमरे में कैद कर लेता है। आम जिंदगी में हर रोज लड़कियां वयस्क होती जा रही है। इस पर लगाम लगाने की समर्थ सोच अभिभावकों में नदारद है। क्या तय नहीं है कि संकीर्ण मानसिकता में हमने जीना सीख लिया है। अपनी ऊर्जा विकास व सांस्कृतिक समृद्धि की दिशा में पहल करने की सोच, ताकत हमने खो दी है। कहां है आम लोग। क्या ऐसे ही मर्यादा को तार-तार होते हम देखते रहेंगे और बनता रहेगा हर दिन नग्नता का एमएमएस।

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