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आज की नारी किस तरफ चल पड़ी हैं। कहीं यह पुरुषों की ईमान खरीद रही हैं। कहीं विलाप करती दिखती हैं। वैसे महिलाओं के पास देह है जिसका कब, कैसे और कहां इस्तेमाल करना है वह बखूबी जान गयी हैं। उसके देह चरित्र ने पुरुषों की पंगत को पीछे धकेल दिया है। सूर्ख, सफेद, चटकदार आवरण पुरुषों को न सिर्फ ललचा, रिझाने की फरोशी कर रहे हैं बल्कि उत्तेजना की लसलसाहट से भी तारतम्य कर बहुत हद तक बहकने को मजबूर भी कर रहे। जरा सी पल्लू क्या सरकी, आदमी का ईमान डोल जा रहा है। यहां महिला विरोध की बात नहीं हो रही बल्कि उस देह का मोचन हो रहा है जिसके पीछे समाज का एक वर्ग पागलपन की हद, तमाम बंदिश को तोडऩे पर आमादा है। इस हड़बड़ी में कहीं बेटियां जन्म लेने से पहले मारी जा रही हैं। कहीं आनर किलिंग की कशमकश सामने है। कहीं महिलायें बलात्कार की शिकार हो खुद मरने को विवश, लाचार दिखती है। रिश्तों के ताने टूटते बिखरते नजर आ रहे हैं। हिंदू समाज के अंदर भी अब मौसेरी, ममेरी बहनों से शादी करने की नौबत आ रही है। बहकते कदम की गलती, चूक से पूरा ताना-बाना तिलमिला उठ रहा है। तमाम सामाजिक बंधनों में रिसाव से मर्यादा कलंकित हो रहे हैं। माथे पर शिकन की टीस, सोच के घाव साफ गहरे होते उभर रहे हैं। इच्छायें हर रोज मर रही हैं और नित नये बंधन कहीं मजबूर हालात के आगे बेबस डोर में पिरोये जा रहे हैं कहीं रिश्ते तार-तार, नापाक हो रहे हैं। जयपुर के एक निजी कंपनी के सीईओ के साथ कंपनी के मालिक ने दोस्तों के साथ मिलकर गैंगरैप किया। सीईओ संगीता खुद को संभाल नहीं पायी और खुदकुशी को तलाश ली। रामपुर के एक अदालत ने ऑनर किलिंग में एक बाप को सजा-ए-मौत की सजा सुनायी है। उस बेबस, कमजोर बाप को अपनी बेटी जो खुद की मर्जी से शादी करना चाहती थी कि बात रास नहीं आयी। बात ईमान की हो रही है। घर की चौखट से बाहर निकली लड़की फिर उसी दहलीज में वापस लौट जायेंगी आज के हालात में कहना बहुत मुश्किल। यह कुसंस्कार की घटनायें स्त्री चरित्र की बदलती सोच के लिये आज घातक है। आदिकाल से महिलायें पुरुर्षों के लिये भोग्या रही हैं। राजा-महाराजा के दरबार में नाचती नर्तकी से लेकर घर के अंदर, पर्दे में छिपी कई बीवियां साकार भोग-विलास की आवरण में लिपटी रही हैं। उस जमाने में सामाजिक वर्चस्व की यह कुछ बानगी भर थी। पर आज भी महिलाओं के सामने उसका देह शोषण, अत्याचार के खिस्से सुना रहे हैं। गद्दाफी ने लोकतंत्र समर्थक महिलाओं के खिलाफ इसी देह को हथियार बना डाला। लोकतंत्र समर्थक महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने के लिये अपने सैनिकों को वियाग्रा जैसी सेक्स दवाइयां मुहैया करवायी। इतर प्रश्न है कि महिलायें कहीं खुद सेक्स सिंबल के सहारे तो जमीनी लड़ाई लडऩे के मूड में नहीं है। कारण, महिलायें भी खुद देह का इस्तेमाल औजार, हथियार के तौर पर करते हुये अब इसे खुले बाजार में वाद का हिस्सा बना दिया है। मर्डर-2 के पांच पोस्टर सबके सब अश्लील, बाजार में उतारे गये हैं। लोगों से अपील की गयी है कि मादक पोस्टर को चुनने में निर्माता-निदेशक को मदद करें। ये फिल्में बच्चों के लिये नहीं हैं। इसकी हीरोइन श्रीलंका से आयात की गयी हैं। क्योंकि भारतीय हीराइनें तो कपड़ा उतारने से रहीं सो श्रीलंकाई सुंदरी जैकलीन फर्नांडीज को सेक्स बम के रूप में परोसा गया है जो भारत के इमरान हाशमी से
लिपटेंगी और यहां के मर्द उसकी मादकता को झेलकर किसी अनजान, सड़कों पर गुजर-बसर करने वाली लड़की को हवस का शिकार बनायेंगे। आज समय ने जरूर सोच को बदल दिया है। लड़कियां हर क्षेत्र में अगुआ बन रही हैं लेकिन भोग्या के रूप में उसके चरित्र में कहीं कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा। वह आज भी दैहिक सुख की एक सुखद परिभाषा भर ही है। जमाना बदला है। सोच बदलने के बाद भी लड़कियां कहीं मर्डर-2 में कपड़े उतारती दिखती है तो कहीं ब्रिटनी सर्वश्रेष्ठ समलैगिंक आइकान चुनी जाती हैं। कारोबार चलाने की अचूक हथियार साबित हो रही हैं ऐसी लड़कियां। पान की दुकान पर बैठी महिला की एक मुस्कान को तरसते लोगों को देखकर तो यही लगता है। एक गांव है। वहां के पुल के बगल में एक पानवाली आजकल, इन दिनों, कुछ दिनों से दुकान चला रही हैं। उस दुकान में सिर्फ और सिर्फ कुछ है तो सिर्फ पान और वह पानवाली। कटघरे में वह दुकान एक जीर्ण मंदिर के कोख में है। वहां पहले रूकना क्या, कोई झांकना भी उचित नहीं समझता था। आज हर किसी की न सिर्फ वहां बैठकी होती है बल्कि जो गुजरता है पानवाली की एक झलक देखे बिना आगे नहीं बढ़ता। अगल-बगल के पानदुकानदारों के सामने एक खिल्ली भी बेचना मुश्किल। पता नहीं उस पानवाली की पान में क्या टेस्ट है कि हर शौकीन वहीं जुट रहे हैं, घंटों राजनीति की बाते वहीं उसी पानवाली की दुकान पर। घंटों बतियाते लोग कई बार पान खाते। बार-बार पानवाली को आंखों से टटोलते। देह विमर्श को निहारते और भारी मन से वहां से विदा होते हैं। शहरी संस्कृति में नित नये प्रयोग हो ही रहे हैं। यहां का रिवाज अब गे भी हो गया है। स्पेन से आये समलैगिंक जोड़े ने दिल्ली में किराए की कोख सेरोगेट मदर की मदद से जुड़वां बच्चों को जन्म दिया है। देश में किराए की कोख दो से चार लाख में उपलब्ध हो रहे हैें। मानो अब, अश्लीलता ने हमें वश में कर लिया है। नौ सेना के अधिकारी रूसी वाला के साथ आपतिजनक तस्वीरों में दिख रहे हैं। रक्षा मंत्रालय ने कमोडोर सुखविंदर सिंह को हटाने का फैसला कर नैतिक रहने का संकल्प दोहराया है लेकिन हम, हमारा समाज कितने अश्लील होते जा रहे हैं इसकी बानगी से हर रोज रू-ब-रू होने का मौका मिल ही जा रहा। तीस से चालीस बरिस की महिलाओं को तब तलक निहारते रहो जब तक वह ओझल न हो जाये। कालेज जाती युवतियों के सामने गोल होती आंखें तो स्कूल से बाहर निकलती लड़कियों को टटोलती, निहारती हमारी आंखें। कभी देखकर मुस्कुराना, कभी सीटी बजाना। अश्लील कपड़ों में घूमती बालायें, सड़क छाप लड़कें। गुटखा, सिगरेट चबाते, हाथ में गाना सुनाता मोबाइल या कान को बहरा करने वाला आईपॉट। मस्ती में कि हम अश्लील हैं। मेरा बाप भी अश्लील है। वह इस उम्र में भी लड़कियों, औरतों को घूरता है। यानी खानदानी अश्लीलों से हमारा समाज अटा-पटा है। ये समय, ये दौर ही अश्लीलों का है। अगर आप अश्लील नहीं हैं। अश्लीलता के विरोधी हैं। आपकी बहू-बेटियां सही तालीम पाकर सुशिक्षित, मर्यादित जिंदगी जीने को आतुर है तो आप एक काम जरूर कीजिये। मेरी सलाह मानिये। चुपचाप इस गली से निकल जाइये नहीं तो हल्का सा सरकेगा पल्लू और आपके भी ईमान डोल जायेंगे।
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