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चलो इश्क लड़ायें

sach mano to
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युवाओं के बहकते कदम किस तरफ जायेंगे। कहीं यह बीयर की बोतल को क्रिकेट गेंद से खोलते नजर आयेंगे तो कहीं खुद की शर्ट उतारते, टॉप लेस होते जिस्म की फरोशी करते। बारह महीनों में बारह तरीके से प्यार को अंजाम देने वाले इस वर्ग को आज क्या होता जा रहा है पता नहीं। टोकाटाकी अब इन्हें बिल्कुल नापसंद है। खुले विचार, खुलापन, खुले बंदिश की जड़ता को तोडऩे पर आमादा उनकी पहुंच वहां तक हो रही है जहां आधुनिकता से सुसज्जित एशो-आराम उनका बेसब्री से इंतजार करते दिखते हैं। आजकल युवा वर्ग रेव की जिंदगी जीने को आदी हो गये हैं। झिलमिलाती रोशनी के बीच, चमकती हुई आंखें, गदराये जिस्म, मुस्कुराते चेहरे और जाम से जाम टकराते, चुस्कियों के साथ अंखियों से इशारा करते युवा वर्ग कितनी सहज, मस्त और बिंदास दिख रहे हैं कि बड़े-बड़े रईसजादों के बिगड़ैल बेटे-बेटियां इस चिपचिपाहट में चिपक रहे हैं। आर्थिक मंदी की वजह से सिलिकन वैली का नशा भले ही उतर गया हो लेकिन युवाओं के दिलो-दिमाग से पब व रेव का उतरना मुश्किल सरीखे है। रात भर की मस्ती, नशा, यौवन, उन्माद व गलबाहियां करते बेफ्रिक जोड़े जिस शारीरिक सनसनी को स्वीकार कर चुके हैं उन्हें उससे बाहर निकालना गोया किसी आग से गर्मी को बाहर करने के मानिंद है। तमाम बड़े शहरों, महानगरों में बढ़ते अपराध के बीच रात-रात भर नशीली, रंगीन दुनिया के बीच थिरकते, लड़खड़ाते पांवों को रोकना, चूमते हाथों को थामना, पिघलते जिस्म को रोकना फिलहाल मुश्किल दिखता है। पब व रेव की सतरंगी रोशनी में बहकने वाले जोड़ो की संख्या नित जुड़ रही है। रेव पार्टी अब महानगरों के सामाजिक ताने-बाने, गुत्थी की तरह बुन गयी है जिसका असर, खुमार छोटे शहरों व कस्बों में भी पांव पसारने पर आमादा है। सिगरेट की छल्ला उड़ाती खुलेपन की मुरीद लड़कियों की बांहों में बाहें डाल दो पैग शराब की गिलास थामे लड़के बदमिजाज शहर की उस जीवनशैली के नुमाइंदे हैं जहां अकेला होना अवसाद की निशानी नहीं। बेखुदी में बहकते कदम, लड़खड़ाते जिस्म, मचलती गरम सांसों का ही कसूर है कि विनोद खन्ना के बेटे साक्षी खन्ना रेव पार्टी में नशे में धुत पुलिस के हत्थे चढ़ते हैें। इतना ही नहीं भारतीय संस्कृति, परंपराएं, धार्मिक मान्यताएं भी तारतम्य से विखंडित हो रही हैं। जिसने कभी रामायण धारावाहिक में भरत के बचपन का भी रोल किया था। लंदन में थोड़ी तालिम क्या पा ली मर्यादा को भूल, कदम रेव की ओर बहका लिये। ऐसा अकेले साक्षी ही नहीं हैं। रामायण की बात हो रही है तो याद आते हैं रामानंद सागर के मुस्कुराते हनुमान की जीवंत भूमिका निभाने वाले मशहूर पहलवान दारा सिंह। दारा के पोते विजय सिंह मेरठ के एक होटल में अपने साथियों के साथ एक लड़की से रेप करते धराये। वह लड़की बाथरूम गयी थी कि पीछे से जाकर विजय ने उसे दबोच लिया। बाथरूम की कुंडी लगा दी और लगे शारीरिक भूख का इश्क लड़ाने। ये कसूर, उस नशा का है जिसके बाद युवा वर्ग की सोच बुझ जाती है और फिर हैवानियत बोलने लगता है। महानगरों में अधेड़ औरतों के साथ मर्दों के जुए खेलने की संस्कृति ने अब साइबर स्पेस जुए का भी अलग रंग अपना लिया है। लोगों ने इंटरनेट पर क्लिक के जरिए भी किस्मत आजमाने लगे हैं। जुए के साथ-साथ पार्टियों का दौर भी चलता है। फाइव स्टार होटलों में खाने के लजीज डिश, शराब, महिलाओं से हंसी-ठिठोली, रह-रह कर रगड़ के बीच रात भर अदला-बदली के खेल पेज थ्री की शक्ल में उभर गये हैं। एनिग्मा के डांस फ्लोर और वहां बजाया जाने वाला संगीत पब की खासियत है तो उसपर नाचने वाला शख्स भी कोई आम आदमी नहीं बल्कि बॉलीवुड के तमाम नामचीन कलाकार होते हैं जिन्हें शूटिंग का एक लाइव मौका यहां मिल जाता है। तंग कपड़ों में पहुंची नायिकाएं ज्यादातर अकेले मजा लेने की आदी हैं। जिंदगी में भी अकेला। एक विशालकाय फ्लैट में अकेले। न पैसों की कमी, न दोस्तों की। बस रात की चादर बिछते ही रंगीन हो जाता है माहौल। सुबह मुंह में शराब की महक व देह से जिस्मानी गंध के बीच मादक हसीनाओं की ऊपर नीचे सांसों में बसी मधुशाला शायद कोई मायने नहीं रखती। इतनी सारी संस्कृतियां, रंग-बिरंगी वेशभूषा, अलग-अलग बोलियां, खान-पान की विविधता शायद ही किसी अन्य देशों के हिस्सों में देखने को मिले। बावजूद, इस सबके बीच हमारी नयी पीढ़ी रेव की ओर बहक गये हैं। आज उनकी जिंदगी रेव के बिना अधूरी है। पारंपरिक खान-पान की जगह विदेशी स्टाइल व्यंजनों व रइसजादों के रइसाना रहन-सहन ने युवाओं की सोच ही बदल दी है। आज के युवा डेल्ही बेली के उस शब्दकोष की तरह हो गये हैं जो अपशब्दों से भरा पड़ा है। जहां दो सेकेंड के ही दृश्य में देह संस्कृति की सीमाओं को तोड़, टूटती सांसों के बीच वेश्या संस्कृति को उधाड़ कर रख दिया जाता है, जिसके ईद-गिर्द तमाम अपशब्दों, गंदगी कैमरे के सामने कैद होता दिखता है और अंत में यही कहा जाता है कि यह पारिवारिक बिल्कुल नहीं है यही सुझाव है कि परिवार के साथ इसे न देंखे चलिये तब तक हम-आप इश्क लड़ा लें।

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