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जिंदगी ना मिलेगी दोबारा

sach mano to
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जिंदगी दोबारा नहीं मिलेगी। यह बहुत कम लोग सोचते हैं। वैसे भी जिंदगी सब अपने-अपने तरीके से जीते हैं। जीना भी चाहिए। जिंदगी उनकी है। वो जिस तरीके से चाहे अपनी जिंदगी जी सकते हैं। सबसे अहम यह है कि आखिर जिंदगी है क्या चीज। लोग कहां से आते हैं। कहां चले जाते हैं। आने और जाने के क्रम में वो क्या करते हैं। उन्हें क्या नहीं करना चाहिए। जो वो करते हैं वो कहां तक सही है। जो नही करते वो कहां तक उन्हें करना चाहिए। वो जिस चीज को नहीं किया क्या वह ठीक है या उन्हें वो करना चाहिए था। तमाम सवालों के बीच प्रश्न है जीवन क्या है। हमारे जीने का मकसद क्या है। बच्चा पैदा करो। बच्चे में लग जाओ। उसको बड़ा करने में लगे रहो। पढ़ाने में जुटे रहो। उसको लायक बनाओ। फिर उसे नौकरी नहीं मिलने का टेंशन लो। उसका टेंशन लेकर किसी तरह उसे नौकर मिल जाने तक लगे रहो बच्चों में। इस क्रम मे अपने मां-बाप को भूल जाओ। बूढ़े मां-बाप से बात करने की फुर्सत तलाशते रहो। उसे तिरस्कार भाव से देखते रहो और अपने बच्चों को पालते रहो, उसी में लगे रहो। फिर उस नौकरी पेशा बच्चों की शादी करो। शादी करके वह फिर तुम्हारी ही तरह गलती दोहराएगा। करेगा वो भी तुम्हारी ही तरह एक बच्चा पैदा। चूंकि वो तुमसे ज्यादा पढ़ा-लिखा है, कानवेंट का प्रोडक्ट। फर्राटेदार अंग्रेजी साथ में और भी बहुत कुछ। आखिर वो ठहरा जो तुमसे ज्यादा अपडेट, सो ऊंची सोसायटी की बात करने लगा है। अपने बच्चों को नामी शहर के नामी कानवेंट में दाखिला करवा रहा है। हजारों रुपये नाम लिखाने में खर्च कर रहा है। उसका बेटा हर रोज कानवेंट स्कूल से पढ़कर घर लौटता है। तोतली भाषा में अपने डैड व मॉम को नए-नए खिस्से सुनाता है। मां-बाप उसी से खुश हैं। अपने मां-बाप को भूल जाने का गम उन्हें नहीं है। वो तो हर रोज उसी बच्चे को पालने में लगे हैं। बड़ा होकर वो भी नौकरी करने लगा है। अपने मां-बाप को भूल अपनी बीवी के साथ मौज ऐश कर रहा है। अभी इसके बच्चे नहीं हुए हैं। डाक्टर कहते हैं, कम्लीकेशन है पत्नी को, जिसकी दवा चल रही है। सुबह-सुबह ही क्लिनिक से खुशखबरी आयी है। पप्पू पास हो गया है अब वो भी लोगों का मुंह मीठा करवाएगा। दवा असर कर गयी है। वो बाप बनने वाला है। उसकी पत्नी गर्भवती है। उसे लगने लगा है जैसे उसे प्रधानमंत्री की कुर्सी रातों-रात मिल गयी हो। खुशी से वह झूम उठा है। घर में तरह-तरह के खिलौने सजा दिये गये हैं। सुंदर बच्चों की तस्वीर कोने में, बेडरूम में लटक गए हैं। अभी से ही वह अपने बच्चे का रूम भी सजाना शुरू कर दिया है। यानी अभी से उसे अलग रखने की तैयारी हो गयी है। बड़ा होकर ऐसा ही बच्चा अपने मां-बाप से अलग हो जाता है। मां-बाप की जिंदगी को ठुकराकर, उससे बंटवारा कर अपने को अलग कर लेता है। रहता है अपनी बीवी व बच्चों के साथ कहीं दूर किसी अंजान शहर में। जहां उसे देखने वाला पहचानने वाला उसे अपना कहने वाला कोई नहीं है। सिर्फ मतलब के सब यार हैं। इनके साथ समय वो गुजार लेता है लेकिन अकेले में खुद को दुत्कारता भी है कि किस लोगों के साथ वह उठता-बैठता है। उसके साथ जो कहीं से भी मानव जैसा बर्ताव नहीं करते हैं। खुद आदमी होते हुये जानवरों जैसा सलूक करते हैं। ईमान-धर्म को बेचकर दूसरों का पैसा भी हजम-हड़प लेना चाहते हैं। बेचता है वह रोज अपने ईमान को, बीवी को भी दाव पर लगाने से नहीं चूकता है। उसके लिये पैसा से बढ़कर कोई भगवान नहीं है। उसके लिए जीवन का, इस खूबसूरत जिंदगी का मकसद ही यही है पैसा कमाओ चाहे जहां से भी लाओ। पत्नी कहती है पैसा लाओ, बच्चे कहते हैं पैसा कमाओ। इसके लिए चाहे किसी का खून, बलात्कार, डकैती को भी अंजाम देना पड़े तो दो। बिन सोचे दूसरों की जमीन हड़प सकते हो तो हड़प लो। बेच सकते हो खुद को दूसरों के हाथ तो बेच लो बस हर-हाल में पैसा रहना चाहिए अपने पास। यही सोच लेकर आज जिंदा है हर आदमी। दूसरों की जिंदगी से खेलकर खुद पैसे की चाह में भटक रहा आदमी। यह तनिक भी नहीं सोचता, जिंदगी न मिलेगी दोबारा। वह यह नहीं सोचता हर नफस पर, इस जिंदगी पर जिसे तुम जी रहे हो, ना जाने कब स्तब्ध, मौन, ठप पड़ जाए और तुम पंचतत्व में विलीन हो जाओ। अखबारों में खबरें छपेंगी एक आदमी सड़क पर हादसे का शिकार। अपने दो मिनट का मौन रखेंगे, कुछ दिनों बाद तुम भूला दिए जाओगे। तुम्हारा बेटा तुम्हारी कोई तस्वीर जो घर के किसी कोने में पड़ा भी होगा उठाकर कवाड़खाने में बेच डालेगा। अब भी वक्त है। ए मानव, कुछ देर के लिए ही सही ठहरो, रूको और सोचो क्या जिंदगी मिलेगी फिर दोबारा।

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