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रामलीला मैदान में दोनों तरफ सेनाएं खड़ी हैं। अन्ना दुविधा में हैं। वो शांति से सब काम निकालना चाहते हैं लेकिन उनकी टीम में कई ऐसे लोग शामिल हो गए हैं जो नशे में हैं। अमर्यादित आचरण कर रहे हैं। वैसे इसमें उनका कोई दोष नहीं। यह देश ही उन्हीं नशाखुरानियों के भरोसे चल रहा है जो दूसरों की संपति पर हाथ साफ, डाका डालते रहे हैं। कहीं धर्म रूपी अफीम चटाकर, कहीं कर्रे-कर्रे गांधी का दर्शन कराकर। फिर आंदोलन भी तो इन्हीं लोगों के बूते-सहारे हो रहा है, आगे भी होना है। नए लोगों को लाओगे कहां से। इसी देश से ना तो अपुन का देश चोर, बईमान, लुटेरों, धोखेबाजों, नंगई, बलात्कारियों का है। सब चटपटी चूरण हैं। एक मसाला बारह स्वाद। एक को बुलाओगे बारह लोग आएंगे। जंतर-मंतर पर बुलाओ तो आधे लोग रामलीला मैदान में इंतजार करते मिल जाएंगे। देखिए ना, अचानक इतने भक्त देश को मिल गए। हाथों में तिरंगा लिए, वंदे मातरम्् गाते लोग रातों रात पैदा हो गए। ठीक वैसे ही जैसे मच्छर बारिश, गंदगी, जलजमाव होते ही भिन-भिनाने लगते हैं, पैदा ले लेते हैं। वैसे भी इन देशभक्तों को मच्छरों से सीख लेनी चाहिए। मच्छरों की हिमाकत को देखिए, शान-ए-शौकत देखिए। वो मच्छरदानी के खिलाफ जंग जीत चुके हैं। ये तो बात वही हो गयी। कपिल सिब्बल ने अन्ना के बारे में संसद में कहा, कोई भी आम आदमी उठे, अनशन शुरू कर दे। भूख-हड़ताल पर बैठ जाए। लोगों को जहां-तहां से जुटा ले। मजमा खड़ा कर ले। कागज के चिट-पुर्जे पर लिखकर दस मांग ले आए और कहने लगे मानों मेरी बात नहीं तो देख लेंगे। अरे, देख क्या लेंगे देख ही रहे हो, दिखा दे रहे हैं। डिब्बा वाले से लेकर रिक्शा वाले तक, खंडहर हो रहे सरकारी दफ्तरों में बैठे मोटा-मोटा चश्मा लगाए बड़ा बाबू सबके सब देश भक्त साबित हो रहे हैं। फिर बात तो वही हो गयी। कल तलक मच्छरदानी मलेरिया के खिलाफ औजार रही, मच्छरों ने काट निकालते, प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर आम आदमी का खून चूसने का पूरा पुख्ता इंतजाम कर लिया। बच्चे जो दिनभर टीवी पर सास, बहू और साजिश, बालिका वधू, पवित्र रिश्ता, साथियां, प्यार की एक कहानी देखकर अच्छाई नहीं सीख पा रहे हैं। दुर्भावना, द्वेष से भर गए हैं। सेक्स के प्रति आशक्त हो रहे हैं। बुराइयों के रास्ते पर निकल पड़े हैं। उन्हें अलकोहल के शिकार अब फेसबुक भी बना रहे हैं। यह देश ही ऐसा है। यहां कुत्ते भूकते कम, कैंसर का पता ज्यादा लगाते हैं तो भला इन मच्छरों को तो अधिकार ही है, वो जंग-ए-आजादी की लड़ाई में आम भारतीयों का खून चूसे। जैसे, हमारे नेता डकार रहे हैं। शर्म नहीं आती कुछ भी इन्हें हजम करने में। संसद में बैठकर एक आम आदमी को महिमा मंडित कर रहे हैं। जिस काम को अंजाम गांधी टोपी वालों को देना चाहिए, वो काम आम आदमी कर रहा है। संसद में सिर्फ भाषण देने के लिए जनता ने उन्हें अपना पहरु नहीं बनाया। वो जनता के अगुवा हैं। उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लडऩे सड़कों पर उतरना चाहिए। मगर ऐसा नहीं दिख रहा। जब तलक जज्बा पैदा न हो, भ्रष्टाचार, गरीबी, आतंकवाद के खिलाफ दिलों में आग न जले, सीने में हुंकार न उठे तिरंगा लहराने से कुछ भी नहंी होगा। जिस देश में एक नेता आम आदमी से डरकर कुछ भी बोलने से कतराए। तब तलक यही होगा। कलकत्ता हाई कोर्ट के जज जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ धन की हेरा-फेरी और झूठे बयान के आरोप में महाभियोग प्रस्ताव राज्यसभा से पारित होता रहेगा। अन्ना ने रधुपति राधव गाना छोड़ पांव पसार लिया है। रामलीला मैदान से निकलकर उनकी सेना सांसदों को घेरने निकली है, फिर बात तो वही हो गयी। डेरा डालो, घेरा डालो। भाजपा, कांग्रेस, वामपंथी, राजद-लोजपा सब यही करते रहे हैं आप भी कीजिए। नतीजा देख ही रहे हैं, आपकी टोली, अमर्यादित हो रही है। कहीं अपशब्द बोल रही है कहीं नशे में धुत लोग मीडिया, पुलिस से बक-झक कर रहे हैं। फिर अन्ना व राज ठाकरे में फर्क की गुंजाइश खत्म हो जाती है। विश्वास जमने से पहले ही तारतम्य लड़खड़ाता दिखता है। कानून तो पग-पग पर है। जिस जिले के अनुमंडल में पति एसडीओ वहीं पत्नी सीडीपीओ। नतीजा, आंगनबाड़ी केंद्रों की हालत देखिए। भ्रष्टाचार की रोटी ही बच्चे निगलते हैं। अब शिकायत करोगे तो किससे, पति से तो साहब तो अन्ना हैं, मैं भी अन्ना तू भी अन्ना। अब भला इस अन्ना से न्याय मांगोगे तो पता चलेगा देश आजाद है। वैसे भी बेचारे एसडीओ साहब, औरंगाबाद भतन बिगहा गांव के रहने वाले तो हैं नहीं कि जेल जाने के डर से बच्चों संग दंपति जान दे देंगे। वो तो सरकारी अन्ना हैं। सरकार के ईमानदार अन्ना, आम आदमी के अन्ना। समस्या को बातचीत से हल करेंगे। भ्रष्टाचार उनके लिए कोई मुद्दा नहीं है कोई आग नहीं है कि वे पानी डाल देंगे। सरकारी अन्ना के घर में भी कई अन्ना हैं जिन्हें पालना-पोषणा उनकी देशभक्ति में शामिल है। वैसे भी देश कितना बढिय़ा आगे बढ़ रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति को भी इस देश की प्रगति से ईष्या हो रही है। वैसे ही जैसे, रामलीला मैदान में जुटे लोग खुद को राम कह रहे हैं, लेकिन उनके अंदर का रावण अब भी जिंदा है। ऐसे में घबराने की जरूरत कहां है। बस, हम सब यही दोहराते रहें मैं भी अन्ना तू भी अन्ना, दोनों भ्रष्टाचारी भाई-भाई, तू भी हठधर्मी मैं भी हठधर्मी, दोनों अन्ना भाई-भाई।
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