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गदहों का आरक्षण

sach mano to
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गदहे अब विदेश जाने लगे हैं। उन्हें पूरी सुरक्षा में लंदन भेजा गया है। लंदन जल रहा था और वहां ये भारतीय
गदहे आराम से मैच खेल रहे थे। ये काम कोई असाधारण गदहा कर भी नहीं सकता था। दूसरे देश के गदहे होते तो कब के मैच छोड़ कर वतन लौट जाते लेकिन इंडियन गदहों की बात ही कुछ और है। ये हाई-फाई नस्ल के गदहे हैं। इन गदहों से शूटिंग करवा लो, बूस्ट, च्यवनप्राश, मैक्स मोबाइल, लाइफ इंश्योरेंस का विज्ञापन करवा लो, कलम, पंखा, बाइक बिकवा लो लेकिन असल जिंदगी में वे गदहे हैं। इन गदहों से मैच जीतने की उम्मीद सिर्फ एक अदद हिंदुस्तानी ही कर सकते हैं। डूबती क्रिकेट की नैया को पार लगाना, उबारना इन गदहों के वश में नहीं। लेकिन क्या कीजिएगा, इन्हीं गदहों को पीएचडी की मानद उपाधि मिल रही है। बिन पढ़े, कालेज गए ही ये गदहे डॉक्टरेट से नवाजे, सम्मानित किए जा रहे हैं। दूसरे ही क्षण इन गदहे को जूते उतारने को भी कहा जाता है। सिर पर मानद टोपी मगर पांव से जूते नदारद, ये तो गदहों के साथ होना ही है। सदियों से गदहे आदमी के वफादार साथी रहे हैं। पीठ पर सिर पर गठरी के ऊपर गठरी लादे, बोझ से दबे मगर पैरों में रस्सी। कूदते रहो अपने मालिक के लिए, जो तुम्हें पहले ही आरक्षण दे चुके हैं। चारों जोन से आरक्षण के बहाने तुम लंदन गये हो। वैसे में, तुम्हारे मालिक बीसीसीआई को फर्क क्या पड़ता है जीतो या हारो। फिलहाल तो मालिक को ये चिंता सता रही है कि उनकी कुर्सी बची रहे। सरकार कहीं राष्ट्रीय खेल विधेयक लागू न कर दे। अगर ऐसा हुआ तो गदहों के साथ मालिक को भी पारदर्शी होना होगा। प्रभावशाली फिर वो हो जाएंगे जो फिलहाल राज्य क्रिकेट संघों में गदहे उपजाने में लगे हैं। मनमाफिक गदहे तैयार कर रहे हैं और खुद की पसंद के गदहों को मैदान में उतारने के लिए बिचौलिए तलाश रहे हैं। खैर, भारतीय क्रिकेट फिलहाल इन्हीें गदहों के सहारे लंदन में जमी, नाक कटवा रही है। इन गदहों के बॉस उम्मीद में हैं कि वन डे में हमारे गदहे रैंकिंग बचा लेंगे। टेस्ट में ताज छीन गयी तो क्या हुआ, टी-20 में हम लुढ़क गए कोई पछतावा नहीं, वन डे तो बाकी है। पर ए मेरे वतन के गदहों के बॉसों, तुम क्यूं भूल रहे हो कि तुम्हारे गदहे कमजोर हो गए हैं। बूढ़े हो चले हैं। उन्हें आराम की सख्त जरूरत है। अब वो मैच जिताऊ, विश्व कप वाले गदहे बिल्कुल नहीं रहे। काउंटी क्लब केंट को पांच रन से हराने से गदहे शेर नहीं हो जाते। अरे, गदहे तो गदहे होते हैं जब तक पूंछ में अंगुली नहीं करोगे आगे नहीं बढ़ेंगे। ऐसे में भला ये बीसीसीआई के होनहार गदहे इंग्लैंड को 4-1 से हराने की कूबत रखते हैं क्या कि श्रीलंका को नंबर दो की पोजिशन से लताड़ मार देंगे। नासिर ने अगर इन गदहों को गदहा कहा है तो इसमें बुरा क्या है। भले इंडियन बुर्जुग गदहों को यह बात हजम नहीं हो रही हो लेकिन बात में बहुत दम है, भले मामला गरम है लेकिन सोचिए, जब बिना पढ़े-लिखे गदहे को लंदन में डि मोंटफोर्ट विश्वविद्यालय से उपाधि मिल जाए, अपना पप्पू वहां पास हो जाए, उसके नाम के साथ डॉक्टर एमएसडी ‘गदहाÓ जुड़ जाए तो हर भारतीयों का सिर गर्व से न तने ये कैसे मुमकिन। भले अगले ही क्षण उस गदहे को जूते उतारने के लिए विवश किया जाए तो इतना तो सहना ही पड़ेगा यारों क्योंकि वे गौरे अंग्रेज जो ठहरे। वे अपने गदहों को भी नहीं बख्शते। इंग्लैंड क्रिकेट टीम के पूर्व कोच डेविड लॉयड को भारत-इंग्लैंड टी-20 मैच से पूर्व ओल्ड टै्रफर्ड बार से धक्के देकर बाहर निकाल दिया गया। अरे गदहे की तरह बार में
लगे खुद की फोटो निहारने लगोगे तो यही होगा। भला कोई आदमी अपनी तस्वीर क्यों देखने जाए। अपुन के देश के अविवाहित गदहों से क्यों नहीं कुछ सीखते। अब देखिए, सलमान इलाज कराने अमेरिका क्या गए, उनकी बहन अर्पिता को एक भारतीय क्रिकेट के होनहान गदहे ने अपना दिल दे दिया और लगे तंदुरूस्ती के लिए रिवायटल का प्रचार करने। कहते हैं, टीवी पर दिख रहे हैं, जब बल्ला नहीं चलेगा तो इंश्योरेंस के भरोसे ही रहूंगा। ये तो आम आदमी का काम है। रिटायर होने के बाद पेंशन पर रहने की। आप तो गदहा हैं, आपके बाप गदहा थे। ऐसे में आप इंश्योरेंस के भरोसे रहने की बात करेंगे तो आगे-आने वाले गदहे हतोत्साहित हो जाएंगे। वैसे भी आपके साथी गदहों के बड़े-बड़े रेस्टोरेंट पहले से हैं, आप भी कहीं खोलकर चना चूड़ बेचना, भला गदहा कहीं निठल्लु रहे। हम तो मान कर ही बैठे हैं कि हर हिंदुस्तानी के अंदर है हीरो। वीरू नहंीं खेले तो देखिए अंिजंक्या रहाणे चमक गए। भई, अपने देश में होनहार गदहों की कमी थोड़े ना हैं। यहां, गली-मोहल्ले में एक से एक नस्ल के गदहे मिल जाएंगे । बस उन्हें चारा खिलाइये, चांस दीजिए। जैसे इग्लैंड टीम के एक खिलाड़ी को आउट होने के बाद भी मैदान में वापस बुला लिया था, फिर देखिए। सब चिरायू अमीन तो हो नहीं सकता कि समझ ले इन गदहों को चराना उनके बस में नहीं, सो राजीव शुक्ल को जो फिलहाल यूपी संघ के सचिव हैं,आईपीएल कमिशनर बनाने की तैयारी शुरू कर दें ताकि वे इन गदहों की पांव में रस्सी फंसाने का काम सही से छान सकें। वैसे भी राज्य क्रिकेट संघों में पहले से ही दिग्गज गदहों के नेता, आसनी जमाए, कुंडली मारे बैठे ही हैं। नरेंद्र मोदी गुजराती गदहों को क्रिकेट के लिए टै्रंड कर रहे है। गोवा के राज्य कैबिनेट मंत्री दयानंद नार्वे गदहों को दौडऩे का अभ्यास करा रहे हैं। पूर्व सेवानिवृत्त गदहे अनिल कुंबले कर्नाटक में हेकों-हेकों कर रहे हैं। भगवान सचिन भी चाहते हैं कि उनका बेटा अर्जुन उनसे भी ज्यादा बीसीसीआई का वफादार व देश का नामी गदहा बनें। जब लंदन में एक बूढ़ा गदहा अपने पहले ही टी-20 मैच खेलते हुए न सिर्फ सन्यास ले सकता है बल्कि इस उम्र में भी तीन गेंदों पर तीन छक्का मार सकता है तो भला, हमारे खेल मंत्री अजय माकन ना उम्मीदी के बीच खेल विकास विधेयक को अगली कैबिनेट में अनुमति क्यों नहीं दिलवा सकते। हे प्रभु, धन्य है यह देश, यहां हर कोई अपने निठल्ले बेटे को बैठे- बैठाए डाक्टरेट करवाना चाहता है। अगर आप भी इस रेस में हैं तो शामिल हो जाइये लंदन की दौर में। कहीं जाने की जरूरत नहीं, बस बने रहिए हमारे साथ, वो देखिए, सामने स्क्रीन पर, ये रहे वर्मा जी, वो रहीं मिसेज आहूलवालिया, अरे ये क्या मि. झाडूवाला भी उन लोगों की टीम में शामिल हो गयीं हैं, जो अपने बेटे को गदहा बुला रहे हैं, गदहा बनाने की तैयारी कर रहे हैं। बड़े होकर ये गदहे और कुछ करे न करे कम से कम टेस्ट मैचों में कप्तानी करते हुए एलन बॉर्डर, ग्रीम स्मिथ के टॉस जीतने का रिकॉर्ड तो जरूर तोड़ देंगे। और तब ये जी, वो जी, झाडूवाले, मिसेज कुलकर्णी आपने एक हाथ में गदहे की मानद टोपी, पगड़ी और दूसरे में जूता उठाए गर्व से सिर ऊंचा करते कहते फिरेंगे- हर हिंदुस्तानी के अंदर है हीरो। तो देर किस बात की, आज ही शामिल हो जाइये, गदहा बनाओ एकेडमी में।

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