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मदहोश भी औरत ही करती है और जलालत भी वही महसूसती है। गांव की एक भोली-भाली साधारण सी जिंदगी की एक औरत अचानक भंवरी हो जाती है। अंगड़ाई लेती भंवरी उस रास्ते को अख्तियार करती है जहां से पीछे मुड़कर वह पति का हाथ नहीं थाम सकती। उस अंग का समर्पण वहां से शुरू हो जाता है, जिस देह का साक्षात्कार किए बिना नेताओं की रातें नहीं कटती और तब जन्मता है एक सीडी। राजनीति का वह क्रूर खेल जिसमें फंसती है हर रोज भंवरी जैसी न जाने कितनी औरतें। शोषित, दुरूपयोग की बनती है वह वस्तु। फलसफा यह, सीडी के सामने आने से पहले भंवरी गायब, लापता हो जाती है। नेता-पुलिस, सत्ता गठजोड़ की कहानी, उस सीडी की खोज जो भंवरी के साथ ही ओझल है, खबर बनती, सुर्खियां बंटोरती,चटकारे लेकर पढ़ी-सुनी जाने लगती है। सीडी में क्या है, कही उसमे उस मंत्री को भंवरी के साथ अन्तरंग सम्बन्ध बनाते तो किसी ने क्लिक नहीं कर लिया या सेक्स का वो रूप छुपा है जो नेताओ के चरित्र को बेसरम कर दे! आखिर भंवरी कहा है! क्या वह जिंदा है। तमाम सवालों के जवाब ढूंढे जाने लगते हैं। क्या मंत्री पर दुष्कर्म और हत्या का मामला दर्जे करने भर से भंवरी वापस लोट आयेगी! आखिर, एक औरत फंसती कैसे है उस जाल में जिसकी बनावट उसकी बुनाई पुरुष मानसिकता से तैयार की गयी हो। गांव-गंवार की एक औरत अचानक रातों-रात इतनी हॉट कैसे हो जाती है। पुलिस वही है, व्यवस्था वही है, हालात यथावत हैं। वायु सेना की एक अधिकारी अंजलि गुप्ता खुदकुशी को सुरक्षित मानती है। उसके संबंध ग्रुप कैप्टन अमित गुप्ता से क्या थे, इसकी तलाश अब हो रही है जब अंजलि कुछ भी देखने को तैयार नहीं है। अमित निलंबित किए जाते हैं, बात तो वही हो गयी। दुष्कर्म की सजा सिर्फ दो थप्पड़। ये कहां का इंसाफ है। अमरोहा में एक महिला के साथ दुष्कर्म होने पर परिजन उसे कोतवाली ले जाना चाहते हैं लेकिन गांव के लोग पंचायत बैठाते हैं और सजा, दुष्कर्मी को सिर्फ दो थप्पड़। लूट लो पूरी औरत जाति को और खा लो आराम से दो थप्पड़। अपना जाता क्या है। कानून तो यही है, कसाब के वकीलों को फीस मिलने का इंतजार है। अफजल के लिए जम्मू-कश्मीर विधान सभा ने फांसी की सजा माफ करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है। अरे, जिस प्रदेश का मुख्यमंत्री ही इश्किया हो, वहां न्याय, इंसाफ की बात, उम्मीद करते हो। गनीमत है, जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के हाथों अब तक गिरवी नहीं है, नहीं तो वैसा सीएम जिसे तलाकशुदा टीवी एंकर पसंद हो, जिसे दो बच्चे और पत्नी की फिकर नहीं हो उसे प्रदेश के बारे में सोचने, समझने की फुर्सत तलाशने को कहते हो। साफ है, घर से लेकर बाहरी दुनिया तक औरतें आज कहीं भी महफूज नहीं है। थ्री स्टार अधिकारी शाहिदा बादशाह को पाकिस्तान में पसंद नहीं किया जा रहा, क्योंकि वह औरत है। कट्टरपंथी शाहिदा की तरक्की का विरोध कर रहे हैं। खिलाफत, आक्रोश तो कश्मीरी औरतें भी जता रही हैं लेकिन दहशतगर्दों के खिलाफ। अठमुकाम से सालखला तक चार किमी पैदल मार्च निकालती महिलाएं नियंत्रण रेखा पर शांति चाहती है। यह सही, कितना उचित कदम है। कम से कम वह मर्दों से पंजा लड़ाने की ताकत हासिल कर रही हैं उस अमन, शांति, भाईचारे के लिए जो आम-आवाम की जरूरत है। अठमुकाम की महिलाएं बेशमी मोरचा की पैरोकार तो नहीं हैं जो मर्दवादी वुल्फ मार्च का विरोध करती या बेशर्मी का मुकाबला बेशर्मी से ही देने पर आमादा हो या उसे ही मुक्ति की राह समझें। भट्टा परसोल में ७ महिलाओ के साथ पुलिसवाले रेप करते है। पिछले दिनों मई से दर्जनों पुलिसवाले गाव आये और महिलाओ की इज्जत उतारी। कौन करेगा अब उन पुलिसवालो की पहचान! नतीजा, आज भी स्त्री विमर्श वहीं है जहां धृतराष्ट्र व गंधारी के समय महिलाएं थी। उस वक्त भी कन्याओं के अपहरण होते थे, ऋषि पराशर भी कामांध होकर फिसल जाते थे, आज बाबा रामदेव से राखी सावंत शादी करना चाह रही हैं। वक्त वहीं, हालात वहीं, सोच वही, तो नियति भी वही। औरतों का हर रोज भंवरी बनना जारी है। कविता रानी मडर में दो लोगो को उम्रकेद हो जाना महिलाओ पर हो रहे अत्याचार के सामने नाकाफी है।
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