Menu
blogid : 4435 postid : 291

मिस्ड कॉल मारो ना

sach mano to
sach mano to
  • 119 Posts
  • 1950 Comments

तुम फिजा हो, मोना हो, बंटी की बबली हो, शीला हो या मुन्नी या फिर कांडा की गीतिका ही सही। मगर तुम माता नहीं हो, किसी की वधू भी नहीं। केवल सुंदर रुपसी हो। आज सभी सुंदरियां इसी अद्र्धसत्य, आदर्श को आत्मसात कर चल पड़ी हैं। नतीजतन, नारी प्रगति कहां जाकर थमेगी, रुकेगी, ठहरेगी कहना, जानना मुश्किल। युवतियों के स्वेच्छाचारी कदम जिस डगर पर बढ़ निरंतर चलने को बेताब दिख रहे हैं ऐसे में यथेच्छाचरण की दुर्गति भी उन्हें भोगना ही होगा। मान-मयार्दाएं, सीमाएं सबका बिखरना, टूटना तय है। आज की महिलाएं स्वीच ऑफ-ऑन करना
क्या सीख गईं उसने मिस्ड कॉल मारना ही शुरू कर दिया। वो चार्ज-रिचार्ज की भाषा बोलने लगी हैं। कौन सा
पुरुष वर्गीय सिम किस सेट में फबेगा, वैलेडिटी, इनकमिंग, आउटगोइंग, वेलेंस, टॉप अप, एक पैसे सेकेंड
सबकुछ में महिलाएं पारंगत। आजकल अद्भुत होती जा रही हैं हमारे बीच की महिलाएं। उनका स्वभाव, चरित्र, सोच, जानना, मनन करना पुरुषों के वश में नहीं। वह क्या सोचती हैं और क्या कर बैठती हैं पता लगाना, समझना-समझाना बहुत मुश्किल। अब देखिए गांव की बालाओं, ग्रामीण ब्यूटी को। हाथ में लेटेस्ट टू सिम मोबाइल लेकिन शौच करने निकल पहुंचती हैं बीच बजरियां सड़क पर। यही चरित्र पुरुषों को सालता भी है और उसके अद्र्ध खुले वस्त्रों को निहारने का आरामदायक मौका भी तलाशता है। जमाना सोचने से ज्यादा तेजी से बदल रहा है। गाना की किताब ने सब कुछ खोल दिया है। उसमें वह नहाती हुई, ब्रश करती हुई यहां तक कि कुछ अजीबों-गरीब हरकतों वाली तस्वीर में भी दिखती है। अब देखिए ना, वो डार्लिग भी पहले से कितना बदल गया है। स्ट्रांगली जादू भी चलाता है, फिसलता भी है और खूबसूरती को जी भर मसलता भी है। और वो, एक लड़की, जो ख्वाब देखती है, बुनती है,अपना जहां तलाशती, टटोलती है। उच्चपद की चाहत, बेशुमार शोहरत में रंगीन हो जाती है। जिसे मर्यादा, अपने परिवार की तनिक परवाह ही नहीं रहती। गोपाल कांडा की देह में समा, रम जाती है। गर्भपात कराती है। शरीर की भूख, चाहत की वह आदी, ना जानें क्या-क्या नियमित करवाने को विवश, समर्पित हो उठती है। मगर खुली जब आंख तो ना था कहीं पीठ सहलाने को कांडा के हाथ ना ही अश्क उठाने के लिए अरूणा ही पास खड़ी थी। सबकुछ साफ करने की हड़बड़ी, छटपटाहट में सिलवटें ठीक करने की कोशिश करती वह मौत को गोद ले लेती है। हां, सोने से पहले उसे ख्याल आता है अपनों का, मां-भाई का जो अब प्रेस के सामने, टीवी कैमरा के सामने अपनी बहन-बेटी का चरित्र चित्रण करते थक नहीं रहे। फिजा की तन्हाई, चांद से बिछुडऩा। मगर कहानी वही, उसी मोड़ पर। मोबाइल पर डर्टी एसएमएस, मेल पर कामुक बातें, जन्म निरोधक सामग्री, क्या नेता, क्या अफसर, घर में अकूत संपति, मिलने-जुलने वालों पर पाबंदी मगर खामोश रातों में स्वेच्छा पुरुष की रजामंदी भी। ऐसे में कदम बहकते, थकते चले गए। एक मिनट…। ‘खेल की बात हो और खेल ना समावेश ना हो ये भला मुमकिन कहां। लंदन ओलंपिक के दरम्यान खेल गांव में जिस रंगीनियत की हद पार होती रहीं। मस्ती में डूबे खिलाड़ी दस हजार एथलीटों ने डेढ़ लाख कंडोम समापन से पहले ही लसलसा दिए। वहां भी दैहिक विमर्श से पहले कोई ना कोई महिलाएं ही थी वह भी देश, राष्ट्र की सर्वश्रेष्ठ सम्मानित, आइकॉन महिलाएं। जरा ठहरिए। फिरंगी सभ्यता की भावुकता के मोह में पड़कर अरुन्धती, गार्गी, मैत्रेयी के पद रज से पवित्र इस देश की ये आधुनिक बालाएं क्या संदेश दे रही हैं, सुनिए। कुमारी वार-विलासिनी, शिक्षिता व्यभिचारिका, कामोन्मादिनी विद्या विलासिनी अविद्यावती। क्या अब भी कुछ कहने की गुंजाइश शेष है अगर हां तो मिस्ड कॉल मारो ना…।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh