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मलाला की अइय्या

sach mano to
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स्कूल जाती लड़की पर दनदनाती चलती है गोली। धैर्य, संयम व शांति का मौन व्रत खंड-खंड, टूट जाता है। पवित्रता, निश्छल, अविरल और कर्मठधारा अचानक लहूलुहान हो उठती है। तिलमिला जाता है हर सांस लेने वाला जिंदा नफस का खून। गंगा-यमुनी तरजीह से निकली मलाला यानी हमारी सरस्वती बूत बन जाती है। मगर उसकी चीख, उसका संदेश, अभिव्यक्ति उनके खिलाफ दीवार, एक नस्तर बन खड़े हो उठते हैं जिनका मजहब ही फसाद है। उन बेखौफ खिलखिलाते फसादियों की तह में जाकर भले ही कमजोर नाखूनों से ही सही उस नींव को खोखला, कमजोर करने, उसे खोदने वाली महज एक छोटी सी लड़की बाल शांति कार्यकर्ता मलाला युसुफजई ही तो है जो बिना किसी परवाह के आज जिंदगी व मौत के बीच फासले को बांटने, पाटने को बेचैन उसकी दूरी, तारतम्य को बांधने, जोडऩे के कशमकश में है। लेकिन उसकी सोच, मंशा, फौलादी इरादों को रोकना, थामना दहशतगर्दों के लिए नामुमकिन, मुश्किल जरूर हैं। आज भी वह जिस शब्द, जिस रोशनी की तालीम जिस भाषा को आकार देने में खड़ी, जुटी है उसपर भले ही तालिबानी बंदूकें पहरा दे रही हों लेकिन मलाला की ताकत उन तमाशबीन सरीखे विश्व के हर कोने-चप्पे में बैठे अंधेरगर्दों के खिलाफ एक आवाज बुलंद करती है जो औरतों को आज तक मांस का लोथड़ा, गोश्त ही समझते, धोखा खाते रहे हैं। उनके लिए औरत होने का मतलब अब भी महज दो इंच जमीन है जिस पर वो मनमाफिक, मनमर्जी फसलें बोते, काटते, लहलहा रहे हैं। मलाला उन सबके लिए एक सबक, इंकलाब है जो दकियानुसी परंपरा को जिंदा रखना अपनी शान, मजहब, धर्म समझते आ रहे हैं। उन पाखंडी, असभ्य नस्ल के राख पर मलाला स्वयं ही नहीं बल्कि संपूर्ण नारी चरित्र को इंसाफ दिलाने, उसे सुखद आयाम, अध्याय से जोडऩे को वह तालिबानी गोली से छलनी जिंदगी जीने, संवारने को आतुर मौत से लड़ पड़ी है। आज सारा जहां, आवाम, देश राजनेता गोया आतंकवाद के सीने में आग की लकीरें खींच देने को बेताब हैं।
ऐसे में लोहे सी फौलादी जिगर वाली मलाला भले आखिरी सांसों से जिंदगी को जोडऩे की जिद में जूझ रही है लेकिन वह हार मानने वाली नहीं बल्कि उस पाकिस्तानी विरासत की हिफाजत के लिए हमेशा खड़ी है जहां हत्या के एक मामले में दो कबीलों के बीच विवाद सुलझाने के नाम पर 13 नाबालिग जिसमें चार से सोलह साल की लड़कियां शामिल हैं को शादी की देह में बांध दी जाती है। मलाला हमारी गार्गी है। अपाला है, धोषा, सुलमा, मैत्रेयी है जिनसे आज महिलाओं को सीख लेने की जरूरत है। जिसने पुरुषों को लाचार, बेबस कर उनकी पंगत
को कमजोर, सिर झुकाने को मजबूर कर दिया। मलाला पाकिस्तान की मिट्टी की उपज जरूर है मगर उसकी
चिरपरिचित मुस्कुराहट, उसका आदर्श, विश्व बंधुत्व की भावना, एकता, अखंडता की चाह के बीच तालीम की जिस बुलंद, जीवंत तस्वीर वह गढ़,खींच, तामीर कर रही है उसकी जरूरत पूरे जगत को है जो खुद को जिंदा तो मानता है मगर उस दहशतगर्दी, आतंक के खिलाफ मौन खड़ा है, जहां सभी नतमस्तक हो जाते हैं। साफ है, गोली खाने वाली महज 14 साला राष्ट्रीय शांति पुरस्कार विजेता मलाला आज भी उस खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के चौराहे पर अकेली खड़ी, लड़ती मिलती है जहां उस तालिबानी, तहरीक-ए-तालिबान की हुकूमत को चुनौती दी जा रही है। जिसे खुद उसके मुल्क पाकिस्तान ने जिंदा रखने, पुष्पित करने का बीड़ा उठाया है या फिर उसे हर सितम कर लेने की छूट, आजादी दी हुई है। मगर कट्टरपंथी भूल कर गए। मलाला नाम है उस नाकारात्कता के
खिलाफत का जो धर्मनिरपेक्षिता को संयम, दिलेरी, साहस, बहादुरी के साथ आगे बढ़ाने का पैगाम दिया, बीड़ा उठाया। जिसने मजहबों, जातियों व नस्लों में भेद करने की इजाजत नहीं दी। उस अभिव्यक्ति का नाम मलाला है जहां से भावी पीढ़ी खुद की राह को चुनती, संवारती है। वह इस उम्र में ही उस बिरादरी के लिए एक नस्तर है जो नफरत की भाषा बोलते, सिखाते हैं और हथियारों से खेलना, पूजना जानते हैं। मलाला हमारे बीच की पौध है।
पाकिस्तान की होकर भी वह हमारी उन बेटियों की रहनुमा एक साथी है जो आज अपनों की चुनौतियों से छलनी पड़ी हैं। वह हक भी मांगती है और लेना भी जानती है। वह उस सामाजिक सरोकार की उपज है जहां औरतों की मर्यादा, संस्कार उसे तरक्की की राह पर चलने, धकेलने को उकसाती है। मलाला की उम्र इस बात की ताकीद नहीं कि वह सोचे, समझे कि जिस तालीम की लौ में उसने स्त्री जाति के लिए तमाम रास्ते बुने, खोले हैं वो किस खतरनाक मोड़ पर है। उसपर बढऩे, चलने का अंजाम, फलसफा क्या होगा। आज जिस सलीके पाकिस्तानी
हुकूमत, सियासी पार्टियां वहां की फौज मलाला के हक में खड़े, हिस्से बने हैं जिस अमेरिका ने तालिबानी करतूत, मलाला के सिर में गोली मारने की घटना की तीखी निंदा करने में तनिक भी समय नहीं जाया, गंवाया, लगाया। वो मलाला को मुकाम तक पहुंचने में कितने कारगर, मददगार होंगे। हक-हकूक की जिस भाषा का पाठ मलाला करती आ रही हैं उसे सार्वजनिक सुरक्षा, एक उम्दा मंच मुहैया कराने में पाक या अमेरिकी सरकार अगुआ बनेंगे इसमें शक। पाकिस्तान की तंग जिंदगी में वहां की वंचित औरतें अक्षर की दुनिया में कदम रख, ककहरा की किताबें, उसके पन्नों को उलट, उसका नैसर्गिक अधिकार पाएंगी शायद नहीं। क्या वह उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के धामपुर क्षेत्र की उस लड़की के समान अपना वजूद जिंदा रख सकेंगी जिसे दुष्कर्म के कारण स्कूल में दाखिले से वंचित कर दिया गया था।
तेजी से उभरते देशों में महिलाएं आज जिस दबाव में हैं। आर्थिक अस्थायित्व, स्थिरता व बेटियों के लिए शिक्षा के बेहतर विकल्प, अवसर मिलने की उम्मीद, तलाश के जद्दोजहद में वे अपनों को नई दिशा नहीं देकर जिस तरीके अवसादग्रस्त उसका शिकार हो रहे हैं वहां उस मुकाम पर मलाला एक क्षीण सी रोशनी भर है। जिसे चमकता, टिमटिमाता देख विश्व की असंख्य माताएं अपनी बेटी के लिए सलामती, बेहतरी, शिक्षित माहौल की दुआ करती दिखती, बिना थके मिलती है। मलाला की सुगंध में भले पाक की खुशबू हो लेकिन उसे चाहने वाले तितलियां हम सब हैं जो ज्ञान की प्राप्ति करना पुरुषों का ही नहीं स्त्रियों का भी जन्मजात अधिकार मानते हैं। वह भारतीय मूल
की उस अमेरिकी युवा निकोल नागरानी सरीखे है जो प्रोफेशनली तो बिकनी बॉडी बिल्ंिडल में अपना परचम लहराती है लेकिन उद्देश्य उसका भारत में रहने वाली ग्रामीण, गरीब महिलाओं को जागरूक करना है। मतलब साफ, मलाला उन तमाम हदों की जवाब हैं जो महिलाओं की गलत छवि पेश करने को आतुर, बेचैन हैं। वह अल्टीमेटम है उन हरकतबाजों के खिलाफ जो बलात्कार रोकने के लिए 15 साल में ही बेटी को बहू बनाने पर आमादा हैं। ऐसे में, उस संकल्पित बाला कोतालिबान फिर से टारगेट करने की धमकी देता है और हमारे हाथ उस मलाला के लिए दुआ करने तक को नहीं उठते…अइय्या।

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