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बिहार में एक और आंखफोड़वा कांड

sach mano to
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बिहार के अंग प्रदेश यानी सिल्क नगरी भागलपुर के आंखफोड़वा कांड की याद अब भी लोगों के जेहन में ताजा हैं। उस शर्मसार घटना ने न सिर्फ यहां के आवाम को सकते में डाला, झकझोरा बल्कि पूरे देश को एकबारगी चौंका, गरमा दिया। लिहाजा, इस विभत्स कांड ने बालीवुड को भी सोचने, फिल्मांकन पर मजबूर उसे अछूता नहीं छोड़ा। नतीजा, सिल्क नगरी के आंखफोड़वा कांड पर प्रकाश झा की गंगाजल ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बंटोरी। देश समेत दुनिया ने साक्षात्कार उस बर्बर, अमानवीय कृत्य को महसूसा, जाना कि कैसे क्रूर व घिनौने तरीके से चार-पांच लोगों को बेदम कर उनके आंखों के सामने सदा के लिए उन्हें अंधेर कर उनकी रोशनी छीन ली गई। आंख में तेजाबी नस्तर ने कैसे एक साथ कई आबाद घरों को चुप, मौन सकते में सदा के लिए बिलखते पीछे छोड़ दिया। वही गंगाजल यानी तेजाबी नासूरी गंध, वो तेज भाप फिर उसी बिहार की जमीं पर खौल, बह रही हैं जिसकी बुआई के बाद उस फसल को जातिवादी, सामंती सोच के बीच गत रविवार को काट ली गई। फिर वही कहानी दोहरा दी गई बिहार में। दो लोगों के आंखों में तेजाब डाल उन्हें फिर से उस रात की काली स्याह जिंदगी में धकेल दिया गया जिसकी कभी सहर नहीं होगी। दो युवक आंखों में तेजाब का नस्तर चुभोए अभी भी पूर्णिया के अस्पताल में भर्ती हैं। फिलवक्त, वहां से दोनों को बेहतर इलाज के लिए नेपाल के आंख अस्पताल में भेजने की तैयारी, हड़बड़ी हो रही है। मामला हालिया पंचायत चुनाव का था। घटना, अररिया रानीगंज प्रखंड के परमानंदपुर पंचायत के हिंगना गांव की है। जहां, तमाम राजनीतिक प्रपंच के बीच खेली गई तेजाबी होली। उस आग पर जिसकी लपेट जातिवाद, आपसी रंजिश, सामंती ताकत को भी खुद में समेट लिया। वहां जो दिखा, निसंदेह खौफ, दहशत का एक लाजवाब मंजर था। जो न सिर्फ उस गांव की बल्कि संपूर्ण बिहार की मानसिकता को उजागर करने को काफी कि कैसे यहां के लोगों की शौक व जरूरत में शुमार हो चुका है सत्ता का लोभ। उसमें दखलअंदाजी की ललक। उस कुर्सी की चाह जिसके लिए एक-एक कर सब कटघरे में खड़े, नंगा होते चले जा रहे हैं। तय है, अभी भी बिहार में चुनाव क्रास्टिज्म के नासूर से यूं ही बाबस्त जोर आजमाइश की कशमकश में हैं और इस पकती जातिवाद की हंडी का फलसफा अस्पताल में मौत से जूझते दो लोगों के रूप में सामने है। साफ है, पूरे प्रदेश में पंचायत चुनाव के दौरान जिस तरीके महज एक मुखिया की कुर्सी को लेकर जोर, दबाव, छल प्रपंच के सारे ताने-बाने यूं ही बूने जाते रहे हैं उसकी महज एक बानगी, एक झलक भर है तेजाब से लथपत हिंगल गांव। मानवता को फिर शर्मसार करती वहां की घटना ने सोचने के लिए फिर से विमर्श को न्योत दिया है। जहां प्रशासन की भागीदारी महज मूकदर्शक से अधिक नहीं और सरकार के लिए घटना बिल्कुल मामूली, नजरअंदाज करने लायक। लेकिन, हिंगल गांव की वो अल सुबह कई सवाल हमारे बीच छोड़ चली गई हैं। वहां उस गांव में आज भी मातमी सन्नाटा है। कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं। सिर्फ लोगों की पथरायी आंखों व जेहन में याद भर, कि कैसे पहले उन पीडि़तों के साथ मारपीट की तमाम हदें पार हुई। फिर कैसे शुरु हुआ दरिंदगी का खेल। वही क्लाइमेक्स। ठीक उसी सलीके जैसे गंगाजल में पुलिस वालों ने किया। ठीक वही अंदाज। वही बैट्ररी का तेजाब। जिसकी चीख में आज जी रहे हैं वहां के लोग। हर तरफ स्तब्ध माहौल बयां कर रही हैं कि कैसे पहले हुई मुन्ना व कन्हैया की पिटाई। फिर कैसे, पंचानंद व अखिलेश गिरजानंद मंडल के दरवाजे पर लगे सोलर लाइट की बैट्ररी से सिरिंज में भरकर लाए तेजाब और अचानक, बेबसी के बीच गंगाजल की धार दो युवकों को लहूलुहान करती चली गई। हां, कुछ बदला सरीके था तो सिर्फ वो वर्दी वही पुलिस का चेहरा। इस बार गांव के लोग ही पुलिस वाले का किरदार जी, निभा रहे थे। उस बस्ती के एक खास समुदाय के कुछ लोग हाथों में तेजाब लिए बढ़ते चले गए और वहां की पुलिस को घटना की भनक तक नहीं लगी। उस महान साहित्यकार रेणु की भूमि रोती-बिलखती, खामोश चुपचाप सहमती चली गई और एक वहां का प्रशासन ये सुशासन की सरकार जो अब तक सिर्फ है मौन। कहीं कोई कार्रवाई नहीं। कोई गिरफ्तारी नदारद। सवाल अपनी जगह आज भी कायम। इस प्रदेश में मुखिया बनने के नाम पर पैसा, ताकत व सत्ता का जिस तरीके दुरुपयोग दिखा है, हुआ है वो विकास के नाम पर शोहरत पा चुकी इस सरकार के नाम पर एक कलंक है। इसी प्रदेश में जहरीली शराब परोसने से दर्जनों लोगों की हाल में जान जाने पर हल्की राजनीति हुई और सत्ता के लोग इस सबसे दूर दिल्ली और पाकिस्तान में पुरस्कार व सम्मान बंटोरते नजर आए। मत भूलिए, अररिया व पूर्णिया उसी भागलपुर के अंदर है जिसमें नाथनगर की कहानी आज भी लोगों को बेचैन कर देती है। जरा याद कीजिए नाथनगर का वो बीच चिलचिलाती दोपहर वो समुद्र सी लोगों की भीड़ और उन्हीं दिनों देशभर में प्रदर्शित फिल्म गिरफ्तार। जिसमें कुछ गुंडे पुलिस अफसर रजनीकांत को उन्हीं की पुलिस जीप में हथकड़ी से बांधकर जीप को आग के हवाले कर देता है। ठीक यही कहानी, वही सोच वही गुंडों सी किरदार नाथनगर के बुनकर भी दिखा चुके हैं जब हंगामा कर रहे बुनकरों को समझाने बिना वर्दी वहां उस भीड़ के बीच पहुंचे एक युवा, तेज तर्रार पुलिस अधीक्षक को ठीक उसी फिल्म गिरफ्तार के अंदाज में जीप से बांधकर बुनकरों ने जला, मार दिया था। मत भूलिए, बिहार की इसी भूमि, यहीं से फिल्म दामुल की कहनी भी शुरु होती है और आगे भी अपहरण यहीं से रिलीज होगी।

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