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बलात्कारी हैं हिंदू

sach mano to
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सैन्य बलों के बजट में 12.5 फीसदी की कटौती। बलात्कार पीडि़तों के घर लाखों की बारिश। यही आज की, भावी देश की सूरत, तस्वीर है। बिल्कुल हिंदू तुष्टिकरण के मानिंद, उनके रक्षार्थ। कारण, आज की दुष्कर्म पीडि़तों में अधिकांश हिंदू परिवार की महिलाएं शामिल हैं। इन्हें अपने बिरादरी के लोग जख्म दे रहे हैं। कभी मुस्लिम लड़कियों का रेप होता देखा है? शायद अंगुलियों पर गिन सकने लायक? ऐसे में, बात जब आन-बान व शान पर बन आए। बन जाओ रट्टा मार। रट लो। कंठस्थ, याद कर लो। कानूनी पोथी खंगाल डालो। जितनी धाराएं याद हो। कुछ उधार भी लेकर, सब उड़ेल दो दिल्ली के लिए। कोई भी कसर छोड़ो ही मत। बाकी प्रदेश की महिलाओं के हिस्से, जो आज भी हो रहीं हैं बीच चौराहों पर निर्वस्त्र होने दो। यह मानते कि बलात्कार सिर्फ हिंदू महिलाओं का ही हो रहा है। भले, मुस्लिम युवक अपराध के अन्य विधाओं में पारंगत हों। दहशतगर्दी उनके खून में हो लेकिन महिलाओं की आबरू से नहीं खेलते ऐसे वहशत दरिंदे। यह काम उन्होंने, उस बिरादरी के लोगों ने हमें, हिंदू होने का एहसास, गर्व करने के लिए छोड़ दिया है। जहां बस से एक युवती ठीक से उतरी भी नहीं। दूसरी, अभी-अभी मुगलसराय के नजदीक ब्रह्मपुत्र मेल से कूदी है। लाचार, बेबस बिल्कुल अद्र्धविक्षिप्त सी हालत में उस लाल टोपी से बचकर। याद कीजिए। उस ट्रेन के जिस शौचालय में उस युवती के साथ हादसा हुआ। कितनी फीसदी हिंदू आज उस सरीके शौचालय से बदबू दूर करने। सही से पानी देने का काम कर रहे हैं। भारतीय मान्यता से दूर, घरों में भी ऐसे लोग शौच से लौटकर हाथ, मुंह, पैर सही से धोते, खंगालते, पोछते भी हैं इसमें शक। कभी सड़कों पर, झाडिय़ों में छुपकर शौच करते ऐसे हिंदू बच्चे, महिला या पुरुषों को देखा है। शौच खत्म, कपड़ा ऊपर। ये वही हिंदू वर्ग के प्रतिनिधि हैं जो आपको हर भीड़ में दिखेंगे। इनका चेहरा जम्मू-कश्मीर राइफल्स के गिरफ्तार उस दुष्कर्मी जवान रमेश जैसा हर हिंदुओं के घर दिख, मिल जाएगा आपको। या फिर उन हिंदू युवाओं की तरह जिन्हें गर इतना ही सालता बलात्कार, उसका रंज होता तो ठीक उस वक्त जब नववर्ष पर जश्न की जगह गम में सराबोर नौजवान दिल्ली की सड़कों पर मोमबत्ती की रोशनी में आंसू बहाते उग्र बने हुए थे। सोच में तल्खी, दिमाग में गरमी लिए युवा विरोध, प्रदर्शन कर रहे थे। ऐन वक्त पर, एक आइटी कंपनी के इंजीनियर, एक एचआर कंपनी का युवा जो भूलवश हिंदू ही था कोल्ड ड्रीक नहीं मंगवाता। उसमें नशीला पदार्थ मिलाकर उसे एक फेसबुकिया महिला मित्र जो पैदा लेने से पहले यह नहीं जान सकी थी कि वो कौन सा मजहब, जात ले रही है, को नहीं पिलाता। उसके साथ गहरी नींद में नहीं सोता। दुष्कर्मी बनने से पहले अपनी मां, बहन को जरूर महसूसता। खुद को हिंदू कहने, होने पर शर्म करता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। युवा वर्ग का यह दोमुखी चेहरा हमें और भयावह, भयभीत कर रहा है। हिंदू समाज में जो अगुआ हैं वही भक्षक। इस खास वर्ग का एक खेप समग्र चेतना जागृति चाहता,महसूसता अग्रसर जरूर है। मगर अफसोस, वहीं साथ, बिल्कुल पास में खड़ा दूसरा लपलपा रहा है। हममें से ही हमारे बीच का ही कोई। एक समूह, एक वर्ग विशेष, दर्शक आज टारगेट मैन की भूमिका में ज्यादा उग्र, मुखर है। वह हिंदू होने का मतलब हमें आराम से सीखा, समझा भी रहा है। ताक में भी है। वही शिकार तलाशता भी है और खुद शिकारी भी बन जा रहा है। गायक हनी सिंह के खिलाफ वही हिंदू विरोधी ताकतें ज्यादा उत्तेजित दिखीं जिन्हें कहीं से खुद पर हमला, खतरा होता दिखा। उनकी दुकानदारी नहीं चलने का डर। बेशक गायकी में अश्लीलता के पूट हैं। शब्द सुनने, सुनाने योग्य नहीं लेकिन उसमें कोई नयापन, बहस, कानून, एफआइआर दर्ज कराने के काबिल कुछ भी नहीं। शायद, उसी हिंदू मानसिकता के एक वरीय पुलिस अधिकारी के सिवा जो अचानक सुर्खियों में आ टपके। सवाल यही, उस गाने को आखिर सुन कौन रहा है। सुनाया किसे जा रहा है? वही एक वर्ग है। जो कभी पेज थ्री का समर्थक रहा या है। या फिर उस हिंदू संस्कृति के लोग जो अपनी पंसद में इसे शुमार कर अश्लीलता की रोटी सेंक, परोस रहे हैं। घरों में भी ऐसे लोग टीवी तक का कभी स्वीच ऑफ नहीं करते। ना ही आंखों पर शर्म को हावी होने देते हैं। लिहाजा, तन-बदन से दूर होते कपड़ों के बीच फूहड़ता जिस्म से जान तक। बिस्तर से लेकर नैनों तक हर जगह कहीं छुपा नहीं है। विज्ञापन की सनसनाहट या फिर हंसने के नाम पर कोई कॉमेडी। सभी दोहरी मानसिकता, द्विअर्थी से भरपूर कंडोम का रंग, फ्लेवर बच्चों के बीच बांटते, परोसते,पढ़ाते। संगीत की पहुंच तो पल्लू के नीचे तक बहुत पहले से ही है। क्या सहगल, भीमसेन जोशी को सुनने वाले बलात्कारी नहीं हो सकते या हैं। के.पी.एस गिल, कांडा या फिर पंडित एनडी तिवारी किस चक्की का गाना सुनकर बड़े हुए। इनका शौक,क्या कभी आरती या भजनमाला सुनने में भी लगा। औरत का गोश्त खाने में हर उम्र के हिंदू आज हर जगह उत्तेजित, नग्न हाल में दिख रहे हैं। पहले की फिल्मी नायिका आंचल छोडऩे की जिद, अदा दिखाती थी। इस डर से कि जमाना क्या कहेगा। आज फास्ट फूड के दौर में बस फेविकॉल से चिपक जाने को जी चाहता है। ज्यादातर हिंदू लड़कियां ही दगाबाज हो रही हैं। इनका जादू स्ट्रागली राजनेता, सेलेब्रिटी पर आराम से चल रहा है। गीतिका हो मधुमिता, भंवरी या फिर कोई आज की बाला। सब इसी बीज की फसल थी जो समय से पहले कट गई। फलसफा, कोलकाता में तृणमूल नेता डांसर पर पैसे लुटाते, ठुमके लगाते मिलते हैं। कहीं कांग्रेसी नेता विक्रम सिंह जो संयोगवश खुद हिंदू हैं, दुष्कर्म करते, पिटते हैं।
हमारे देश के वैज्ञानिक 83 साल से नोबेल के पास भी नहीं फटक सके लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों बिकने में कहीं इन्हें शर्मिदगी, संकोच नहीं। लोगों पर इन कंपनियों की नई दवाओं का परीक्षण कर इस हिंदुत्ववादी देश को तबाह करने पर तुले,आमादा हैं। कहीं से इन्हें कोई गुरेज, शर्म नहीं। माना, नकलची हम शुरु से रहे हैं। यह हमारे स्वभाव, चरित्र में है। लेकिन सिर्फ शौक, जरूरतों के मुताबिक। सरेआम बलात्कारी को फांसी देने या पत्थर मार-मार कर उसे नपुंसक बनाने के लिए नहीं। इसके पीछे तर्क भी हिंदूवादी। यह सभ्यता मुस्लिम देशों की है। यह हमें नहीं सिखनी, पढऩी।
अरे, जो जानना चाहता था, जान गया उस दिल्ली गैंगरेप पीडि़ता का नाम। उसके परिजनों का पता। जिसे मिलना था मिल भी लिया। लालू प्रसाद तक जाकर मिल लिए। तब भी उसका नाम छुपाए बैठे हो किससे? उसका नाम सिर्फ उस तबका, उस आवाम से जिसे मुफ्त की घुट्टी पिलाकर नेता से लेकर संत तक अपनी जमीन तैयार करने के लिए मदारी की तरह नचाते रहे हैं। सोचो, उन पांच दरिंदों को फांसी भी दे दो। बेशक उनका वहशी का नाम भी छुपा लो। सार्वजनिक मत करो पर क्या उस नाबालिग की शक्ल में घूम रहे समाज के भेडि़ए को भी हिंदू होने का मतलब कभी क्या नहीं सिखाओगे। या यूं ही हिंदूवादी थाना में ऑन डयूटी बैठे पांडे जी को बजाते रहने दोगे सीटी। सोच लो…।

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