Menu
blogid : 4435 postid : 344

यौन शिक्षा का एबीसी (जागरण जंक्शन फोरम)

sach mano to
sach mano to
  • 119 Posts
  • 1950 Comments

यौन शिक्षा का एबीसी।अब यही बाकी बचा था। इसे भी पूरा कर दो। क्यों रखोगे बच्चों को भी चैन, सुकून में। उनसे उनका बचपन भी छीन लो। उसे भी बाजारवाद की अंधी गलियों में परोस दो। बना दो एक जीवंत उत्पाद। जो सज-संवर के बिक रहे हैं अभी चोरी-छिपे। उसे खुले बाजार का हिस्सा बना डालो। बिकने दो उनके जिस्म और खरीद लो मनचाहा बचपन। बच्चे अब तक ही कहां थे सुरक्षित। कहां था उनमें बालपन कि उसे सेक्स की शिक्षा देकर खड़ा करना चाहते हो चौराहों पर। खुले बदन निहारना चाहते हो चंचलता को। समाज के सामने खुद की भूख के लिये खड़ा करना चाहते हो मासूमों को, तो देख नहीं रहे, तुम्हारे सामने है समाज का सच। सब कुछ बिल्कुल साफ। समाज में कई नाम हैं इन फेहरिस्त में। खंगाल लो पुलिस फाइल से। झांक कर देखो शहर से लेकर गांवों तक के स्कूलों में। दीवारों पर तुम्हें वैसे ही मिल-मिलेंगे पढऩे के लिये कई किस्से, जिससे तुम्हारे अंदर की हैवानियत जाग जायेगी। बहशी हो जाओगे तुम यह जानकर कि जिन्हें तुम कल-तलक मासूम, समझ रहे थे वो उससे आगे हैं। स्कूलों के ब्लैक बोर्ड से लेकर बाथरूम व अन्य दीवारों पर कभी झांक कर देखो वहां तुम्हें वैसे ही बचपन जवान होता दिखेगा। फिर क्यों उसे और उसकाना चाहते हो। उन दीवारों पर परोसे जा रहे अश्लीलता को तुम व्यवहार में लाना चाहते हो पढ़ाओगे ही कि सेक्स क्या है। कैसे करते हैं तो तेरी मर्जी। पढ़ाकर ही देख लो। तुम्हारा सभ्य समाज कहां जाकर रूकता, ठहरता है देख लेना। अभी तुम्हारा कालेज तो दूर, स्कूल परिसर के बाहर ही अभद्रता है। चाट-पकौड़े खाते, पान चबाते, सिगरेट पीते मनचले लड़कों को लेकर वहां खूब चल रही है लोगों की दुकानें। अब तुम भी स्कूल-कालेज परिसर में खोल लो कंडोम की दुकान ताकि प्रैक्टिकल ज्ञान वो अपने मनपंसद फ्लेवर के साथ कर सकें। अरे अब भी शर्म करो। चेत जाओ। मां-बाप के बेडरूम में बच्चों को मत झांकने की इजाजत दो। देख नहीं रहे हो जेएनयू में छात्रायें पोर्न धंधे में लिप्त मिल रही हैं। बड़े-बड़े स्कूलों की लड़कियां सेक्स रैकेट में संलिप्त हैं। ब्लू कैसेट बच्चे बेच ही नहीं रहे बल्कि बड़ों के साथ हमबिस्तर होते तुम उन्हें परोस भी रहे हो खुलेआम। फर्क भी सामने आ रहा है। बड़े-बड़े शहरों में बच्चों का अभिवादन करने का तरीका भी तुम्हारे लिये मुसीबत बन गया है। बच्चे अब हाथ मिलाकर या गले मिलकर अभिवादन नहीं कर रहे बल्कि चुंबन लेकर कर रहे हैं। होठों पर किस करते देख शिक्षिकायें भी हैरान हैं। अब सेमिनार होगा। माता-पिता को बुलाया जायेगा। अभी तो बुलाबा है बाकी क्या होगा खुद सोच लो। कहां ले जाना चाहते हो बच्चों को। क्या शिक्षा देना चाहते हो उन्हें। किसको कहोगे कल होकर शिक्षित। सोचो, जब तुम्हारे घर में बच्चे सेक्स के बारे में तुम्ही से सवाल दागेंगे। कहेंगे, पूछेंगे। अश्लीलता तुम्हारे घर से ही शुरू हो जायेगी। तुम क्या सिर उठाकर नजरें मिलाकर बच्चों से बात कर सकोगे। वैसे चिंता की कोई बात नहीं। मुंबई की सांसद प्रिया दत्त ने यौनकर्मियों को मान्यता दिलाने की पहल, बात कर रही है। शुक्र मनाओ, अगर इस कालेज को मान्यता मिल गयी तो तुम्हारे बच्चों को यौनकर्मी की नौकरी तो समझो एकदम पक्की। क्या कहां मैं कुछ गलत कह रहा हूं। क्यों तुम्ही बतलाओ इसमें बुरा क्या है। जो पढ़ोगे उसी फैकेल्टी की नौकरी मिलेगी ना। समाज में लोग शिक्षा मित्र की नौकरी पा ही रहे हैं। विकास मित्र बन ही रहे हैं तो यौन मित्र बनने में गुरेज कैसा। बच्चे को यौन शिक्षा देने पर आमादा हो लेकिन उसे यौनकर्मी नहीं बनाओगे। नौवीं व ग्यारहवी के बच्चों को यौन शिक्षा देने पायलट प्रोजेक्ट बना चुके हो। बारह साल की उम्र में बच्चों के बीच सेक्स को वैध करार देने के लिये प्रस्ताव पर विचार कर रहे हो। बारह साल के बच्चों के बीच नान पैनेट्रटिव सेक्स यानी बाहरी अंगों के साथ सेक्स को अपराध मानने से इनकार के लिये मसौदे तैयार कर रहे हो। बाल विकास मंत्रालय के पास प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल आफसेज बिल 2010 पड़ा है लेकिन तुम तो बच्चों को रूपम पाठक बनाना चाहते हो जो एक दिन खुद खंजर उठाकर तेरे सिने पर खड़ा हो जाये। परोसो, खूब परोसो। नग्नता को उछालो। मगर सोच लेना पहले और बाद का सेंस आफ सेक्स। बच्चे तुम्हारे हैं। सेक्स की पढ़ाई तुम्हारी जरूरत ही है। इसके बिना तुम शिक्षित नहीं कहला सकते तो एक सलाह बिन मांगें दे रहा हूं- शहर वालों मान लेना गांव मेरा आ गया-बच्चियों के सर पे जब आंचल नजर आने लगे।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh