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नमो: इशरत नमो:

sach mano to
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नमो: रांझणा की सिक्वल बनाने की तैयारी में हैं। भाजपा ने इसकी पटकथा तैयार कर दी है। संवाद व निर्देशन का जिम्मा स्वयं नमो: संभालेंगे। गीत लिखेंगे राजनाथ। संगीत देंगे अमित शाह। कोरियोग्राफी संभालेंगी सुषमा। अधिकांश फिल्मांकन, छायांकन गुजरात बाकी बिहार में। रांझणा में नायक-नायिका वाराणसी की तंग गलियों में इश्क फरमाते मिले थे। इस सिक्वल में गुजरात की वादियों का जमकर लुत्फ उठाएंगे लोकतंत्री। फिल्म 2014 में प्रदर्शित होगी। कलाकारों का चयन एनआइए/आइबी के ऑडिशन से किया गया है। भाजपा ने बतौर लीड, नायक जावेद शेख को साइन भी कर लिया है जिसके पिता नागेंद्र पिल्लई पार्टी के परंपरागत बॉक्स ऑफिस हिट यानी हिंदू थे। बाद में नायक जावेद धर्म परिवर्तन कर लेता है। वहीं नायिका इशरत जहां जिसके गोत्र का पता नौ साल बाद लगता है एक आतंकवादी, फिदायनी है जो पिता की मौत के बाद अपने परिवार को सहारा देती है। उसके लिए दो वक्त की रोटी जुटाती है। अचानक, एक दिन वह मुख्यमंत्री को उड़ाने की साजिश रचती खुद औरत बम बन जाने को बेकरार, हमले की सोचती, पकड़ी जाती है। फिल्म बिल्कुल एक था टाइगर के मानिंद आगे बढ़ती है। रहस्य, रोमांच, थ्र्रिलर से भरपूर। थोड़ा उलट भी। यहां नायक-नायिका के तार, संबंध आतंकी संगठन लश्कर-ए-तोयबा से जुड़े, निकलते हैं। फिर क्या…मुंबइयां मिर्च-मसाला। वही एक के बाद एक फर्जी मुठभेड़। मारधाड़। सीबीआइ जांच। बजबजाती राजनीति। रैंबों-मोगैंबो वाले संवाद। अदालती बहस। ट्यूटर पर उठा-पटक। शशि थरूड़ चित।
दृश्य एक : फ्लैश बैक। मुंबई की एक अदालत। अदालत के बाहर, परिसर में जुटते लोकतंत्री। अंदर बहस। वर्ष 2006 की घटना यहां दोहरायी जा रही है। 11 नवंबर का दिन। पुलिस रामनारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया को नवी मुंबई के वाशी से छोटा राजन गिरोह का सदस्य होने के संदेह में उठाती है। शाम हो चुकी है। तभी पश्चिमी मुंबई के वर्सोवा स्थित नाना नानी पार्क में होती है फर्जी मुठभेड़ और मारा जाता है लखन। बहस पूरी। सबकी निगाहें टकटकी लगाए । कैमरा जज की ओर। फैसला आ चुका है। पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा आरोप से बरी। वहीं मुठभेड़ का असली नायक, आरोपी प्रदीप सूर्यवंशी समेत 12 दोषी करार दिए जाते हैं। सभी लोकतंत्री दिल थामें, सांसें रोके बैठे हैं इस आस में कि रांझणा के सिक्वल के असली गुनहगार का क्या होगा? आखिर कौन है वो?
दृश्य दो : फर्जी एनकाउंटर कर इधर चुनाव दर चुनाव जीते जा रहे हैं। सीएम की कुर्सी पर सफेद दाढ़ी, गोल्डेन फ्रेम का चश्माधारी लगातार तीसरी बार आसीन हो चुका है। शुरू होता है सत्ता का दुरुपयोग। सीएम का तानाशाही चेहरा खिलखिला उठता है। एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बन चुका है वह। 2001 में पावर आते ही अब तक 56 की तर्ज पर शोराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़, कौसर बी फर्जी मुठभेड़, तुलसी राम प्रजापति फर्जी मुठभेड़, सादिक फर्जी मुठभेड़,गोधरा कांड.. का निर्देशन वह अपने संगीतकार व गृह राज्यमंत्री अमित शाह से करवा चुका होता है। जो गुजरात आ रहे आतंकियों का सफाया करने वाले अपने आलाधिकारियों,अफसरों को डांडी नमक खाने की सलाह देता, परोसता, ब्लैक जैकेट पहने दिखता है।
दृश्य तीन : सफेद दाढ़ी वाले सीएम की पहली ताजपोशी होते ही गांधी की भूमि में गोडसे उगने लगते हैं। आतंकी इतिहास की कहानी यहीं से शुरु हो जाती है। इसकी भनक सीएम के दल को भी है। सफेद सांप्रदायिक दाढ़ी के एक-एक बाल के आतंरिक आतंक से पार्टी यानी भाजपाई खेमा अभी से विचलित, क्या होगा इस बड़े बजट वाली फिल्म का। मगर, 2014 में फिल्म प्रदर्शित होते ही कुछ मीठा हो जाने की उम्मीद में सभी नमो: नाम केवलम् के एकमात्र चटपटी कुरकुरे को चटकारा लेकर कुरकुरा, चबा, खा भी रहे। परोसने को विवश भी लेकिन पेट भर उसे पचा नहीं पा रहे। कारण, 13 सालों में गुजरात ने बहुत कुछ भोगा। वहां के सामान्य व पुलिस प्रशासन के लिए नरेंद्र एक हौवा से कम नहीं। जो बोला सो मान्य। नहीं माना तो आपदा मोल लो। केशुभाई पटेल, प्रवीण पजियार, प्रवीण तोगडिय़ा का अंजाम देखो। आडवाणी, संघ, विहिप की हालत देखो। सबके सब इस घनचक्कर के फेर में। करीबी कलाकारों को ही फिल्म में भूमिका देने वाला। आडवाणी के खास नदारद। बस सुधांशु मित्तल को राजनाथ का कमली पत्तल साफ करने के लिए बख्श दिया। गुजरात के कांग्रेसियों को सत्ता सुख का चस्का लगाया और गुलाम बना लिया। संघ हिंदूवाद को भोग रहा। नमो: अल्पसंख्यकों को रांझणा का सिक्वल सुना रहे। विजन डाक्यूमेंट की रजामंदी दे रहे। पार्टी को मजबूत करने के नाम पर कुछ चापलूस, धूमिल छवि वाले मुस्लिम को आयात कर राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में गुजरात के फ्लाप विकास मॉडल को बहुप्रचारित करने की मार्केटिंग। कभी विवेकानंद तो कभी सरदार पटेल के नाम पर यात्रा। उद्देश्य सरकारी माल से कांग्रेस व केंद्र सरकार की धुलाई। अब ध्यान बिहार के सुशासन की रंगाई पर। मोदी ने अपने बिहारी फिल्मी स्पॉट व्बॉयों से 30 जुलाई तक जिला, प्रखंड व पंचायतों में भंडा फोड़ दिवस मनाने को कहा है। जाओ ए कार्यकर्ताओं घूम-घूम कर लोकतंत्रियों को सिनेमाघर आने व मोदी को देखने का आमंत्रण दो। आखिर गुजराती फिल्म का प्रोमो बिहार में क्यूं। दरअसल, करण जौहर की फिल्म बांबे वेल्वेट में होमोसेक्सुअलटी व गे को केंद्र में रख शूटिंग हो रही है। बिहार में इस संबंध में दरार आ चुका है। भाजपा-जदयू टूटन से देश के 3, 626 गांव जो राम के नाम पर हैं उनके नामकरण पर खतरा उत्पन्न हो गया है। बिहार के नाम पर 189 गांव हैं जबकि गुजरात के नाम पर 2011 में की गई गणना में एक भी गांव नहीं हैं। नमो: को ये गंवारा नहीं। अब वैसे गांव जो रावण के नाम पर हैं नमो:मय होंगे यही विजन 2014 है, फिल्म का असली क्लाइमेक्स भी।
दृश्य चार : फिल्म के एक दृश्य में नमो: को कुछ मुस्लिम टोपी पहनाने की कोशिश करते दिखते हैं। नमो: उन्हें चुनाव आयोग घोषणा पत्रों की गाइडलाइन समझाते इसे मुफ्त उपहार मानकर लौटा देते हैं। यह सब अन्य प्रदेशों में पार्टी के क्षत्रपों को नहीं पच रही। सभी नमो: से बिदकते फिल्म में दिखाए गए हैं। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह, राजस्थान में बसुधरा राजे, छत्तीसगढ़ में रमन सिंह खुद की पसंदीदा किरदार चुनना चाहते हैं। चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष यानी रांझणा सिक्वल के निदेशक को हालिया आगामी चुनाव से दूर रखने की कोशिश फिल्म को रोचक बनाते हुए लोकतंत्री को बांधे रखने में सफल होगी, ऐसा फिल्म समीक्षक अभी से मानने लगे हैं।
दृश्य पांच : कैसे फिल्म की प्रोमो सुपर हिट बनाने के लिए जालंधर में एक भाजपा कार्यकर्ता ने सोनिया की आपत्तिजनक फोटो फेसबुक पर डाल दी। सुनाएंगें कैसे फिल्म के अंत में इशरत जहां की मुठभेड़ में होती है मौत। मौत की जांच कर रहे सीबीआइ अधिकारी को क्यों मिलती है जान से मारने की धमकी…इंतजार कीजिए सब कुछ लाइव दिखाएंगें। ले चलेंगे इशरत के घर। आरोप का खोलेंगे पिटारा। क्या सच बोल रही इशरत की मां शमीमा कौसर व बहन मुशरत…।नमो: इशरत नमो: सब कुछ दिखाएंगे, कहीं जाइएगा मत… मगर एक ब्रेक के बाद।

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