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साधो, इ मुरदन के देश

sach mano to
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जश्न-ए-आजादी के ऐन मौके पर भारतीय जांबाज सैनिकों पर दनदनाती चलती है गोली। धैर्य, संयम, शांति की पवित्र, निश्छल, अविरल, कर्मठधारा लहूलुहान हो उठती है। तिलमिला उठता है हर नफस। पाकिस्तान पांच सैनिकों का शव बतौर सौगात एक तोहफा हिंदुस्तान को भेज देता है। उम्मीद के साथ कि इसी महीने तय भारत-पाक के प्रधानमंत्रियों की बातचीत में अमन-चैन की फिर दुआ होगी। संताप की पीड़ा सहती, झेलती भारतीय संहिष्णुता यहां की सरकार फिर से एकबारगी, उसी नजाकत के साथ, पुरानी अदाओं को दोहराते, उसी का पाठ पढ़ते रहम की भीख मांगेंगें और आगरा वार्ता के बाद की कहानी फिर से दोहरा दी जाएगी। इधर, दोनों प्रधानमंत्री फिर शांति की अपील करते दिखेंगे। भाईचारे की गफलती में गलबाहियां, हाथ मिलाएंगें। उधर, जम्मू-कश्मीर के पूंछ सेक्टर के चक्का दा बाग इलाके में गोलियों की आतिशबाजी करते पाक सैनिक ईद की खुशियां मनाते मिलेंगे। बाबस्तपरस्त यहां की सरकार सब ठीक है कहती, उसी अवतार में कतई उन शहीदों की चिंता करती सुनाई, दिखाई नहीं पड़ेगी। हां, बिलखते परिजनों तक महज चंद रुपयों की रोटी जरूर पहुंच जाएगी। सत्तानबीसों को कभी सैनिकों के शव की वीभत्स तस्वीर नहीं दिखती जिसकी चीख उन आतंकी पाकिस्तानी हुकूमत में शामिल सेना के हुकुमरानों सरीखे चीन, बांग्लादेश के हर कोने-चप्पे में बैठे भारत को अस्थिर करने की मंसूबा पाले ताकतों, आतंकी पहरूओं, कठमुल्लों के खिलाफ आवाज बुलंद करती नहीं थकती। जो भारतीय सैनिकों को महज अपनी जमीन समझते। कभी सिर काटते। उसे छलनी कर बेवजह कहीं फेंक देने की आदी, चीज मानते या फिर सरबजीत जैसों की इतनी अमानवीय पिटाई करते कि मौत को भी शर्म आ जाए। दागियों, धनकुबेरों व राजनेताओं के गठजोड़ से चलता यह देश एक ईमान की परिभाषा बोलती, व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन बिल को जल्द लागू करने की जरूरत संसद में बैठे को समझाती, देश के सिस्टम को सुलझाने की कोशिश करती, दिखती दुर्गा शक्ति को तो संभाल नहीं पा रहा। ऐसे में, भारतीय उपमहाद्वीप में करवट ले रहे राजनीतिक समीकरण के हिसाब से तैयारी कर पाने में हमारी नाकामी का है। नवाज शरीफ का कश्मीरी मुद्दा प्रधानमंत्री बनते ही उठाना। लश्करे-तैयबा के सरगना हाफिज सईद के इशारे को समझने जैसा कि कश्मीर में अशांति फैलाने के इरादे, रास्ते साफ दिख रहे। फिर भी हम पाक से रास्ता, साफ-सुथरी वार्ता का ही खांका खींचते समय रहते चेत नहीं रहे। यह शर्मनाक, हताशा से भरे कतई आश्चर्य की बात नहीं। एक साल की सूरत देखिए। सीमापार से युद्ध विराम उल्लंधन व घुसपैठ की घटनाएं जानलेवा बढ़ी है। 2010 में 40, वर्ष 11 में 51 वहीं वर्ष 12 में 71 तो 2013 में अब तक 57 मामले दर्ज हैं। जरा सोचिए, 2014 में अफगानिस्तान से जब अमेरिकी सैनिकों की वापसी होगी तब क्या होगा? गत आठ जनवरी को दो भारतीय सैनिकों का सिर अलग कर दिया गया। देश ने क्या किया? इंडियन हॉकी लीग में हिस्सा लेने आई पाक टीम को वापस भेज दिया। अब पांच सैनिकों की मौत पर पाक के उच्चायुक्त को तलब कर महज विरोध जता रहे। घटना भारतीय प्रधानमंत्री के अफगानिस्तान दौरा के समय ही बुन-रच लिए गए थे। लश्करे तैयबा के जिहादी यह हमला हमसे अफगानिस्तान मामले को गंभीरता से लेने का बदला मान रहे हैं। तीन अगस्त को जलालाबाद में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर आत्मघाती हमला, बारह की मौत को भी हमने बहुत ही हल्के में लिया मगर अमेरिका एक अलजवाहिरी के आगे पूरा ओबामा प्रशासन झुक चुका है। 19 अमेरिकी व वाणिज्यक दूतावासों में अमेरिकी ताले लटक, झूल रहे हैं। सभी घमकी के आगे बेदम।

हाल ही में चीनी सैनिक हमारे बीच घुस आए। और हम रणनीतिक व कूटनीतिक दोनों ही स्तर पर गंभीर नहीं दिखे। आज पूरा विश्व आतंकवाद का गुलाम बनता दिख रहा। पाक व पाक अधिकृत कश्मीर में 42 आतंकी शिविर चल रहे हैं। एक हजार आतंकी रह-रहकर भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश कर रहे। दो माह में 17 घुसपैठ की कोशिश व 19 आतंकी को मार गिराने का साहस, जोखिम हमारे जवान हंसते-हंसते निभा गए। हालात, मजबूरी की शक्ल में सामने। कारगिल युद्ध में शहीद लोगों के नाम पर हमारे देश में ताबूत घोटाला हो चुका है और यह वहीं देश है जहां क्रिकेट में भारतीय टीम की जीत पर धन की मूसलधार बारिश हो रही है। कारगिल सरीके न जाने कितने युद्ध में देश के लिये सिने पर गोलियां खाकर लहुलूहान होने वाले शहीद के विधवाओं की सूनी कलाई, पथरायी आंखों को सांत्वना देने के लिये सरकार के पास वक्त नहीं है । मुंबई व कारगिल युद्ध में शहीद हमारे जांबाज अफसरों के परिवार अंधेरे की गुमनाम जिंदगी जी रहे, दरकिनार हैं। कहां हैं,किस हाल में हैं, किसे-क्या पता। बच्चे आज भी पिता की याद में मोमबत्तियां जलाये सूनी रातों में आंसू बहा रहे हैं। बूढ़े कमजोर कंधों से अपने बेटे की अर्थी उठाने वालों का दर्द आज भी उनके सिने के बालों में पिरोये हैं। क्या किसी केंद्र या राज्य सरकारों के पास फुर्सत के दो पल उनके लिये हैं जिनका कोई अपना दिन-रात, धूप-बारिश की परवाह किये सरहद की हिफाजत में जुटा रहा ताकि हम चैन की नींद सो सकें। मुंबई हमलों के शहीद हों या कारगिल में छलनी होने वाले, देश के नाम पर मर मिटे हमारे शहीदों के परिजन किस हाल में जी रहे किसी ने सोचा या सोचने की कभी जरूरत महसूस की। शायद नहीं। कहां हैं सरकार के नाम पर सत्ता का सुख पाने वाले। रोते-बिलखते बच्चे, विधवाओं की चीख, बूढ़ी मां का कलेजा व लाचार बाप के थक चुके पांव को मरहम लगाने वाला इस देश में कोई है। देश के नाम पर तिरंगा को कफन बनाकर ताबूत में लेट जाने वाले जांबाजों, जिसने सीने को गोलियों से छलनी कर मातृभूमि की रक्षा में अपने परिवारों को भी सदा के लिये तिल-तिल कर मरने के लिये छोड़ दिया। जो अब कभी लौट के नहीं आयेगा दोबारा अपना देश, समाज व परिवार में। जिसके परिवार अब नहीं खेलती कभी होली। दीपावली पर जिसके घर दीप नहीं जलते। क्या उन शहीदों के परिजनों के लिये कभी धन की बारिश हुई है। शायद नहीं।

चमन भी अपना है फूल अपने बागबां अपना
तरस रहे हैं मगर लज्जते बहार को हम।

क्रिकेट खिलाड़ी करोड़ों में बिक रहे हैं और देश के नाम पर जिसने गोलियां खायीं उसके परिजन आंसू बहा रहे हैं। ये ऐसा फर्ज है जो मैं अदा नहीं कर सकता। मैं जब तक घर न लौटूं मेरी मां सजदे में रहती है। आज हर शहीद की मां सजदे में है यह जानते भी कि उसका लाल नहीं आयेगा कभी लौटकर दोबारा। यह वही बिहटा थाने के आनंदपुर ठेंकरा गांव की पूंछ सेक्टर में मारे गए विजय कुमार राय की मां है जिसकी आंखों में रोशनी नहीं थी। विजय बीस दिन पूर्व ही उसकी आपरेशन कराकर पूंछ लौटे थे वह वही मां है जो सिर्फ खोना जानती है। बदले मे अपने तिरंगे के तीनों रंगों को लहू से धोकर फहराना जानती है यह कहते कि शहर का शहर खंडहर में हुआ तब्दील मगर-मां के आंचल में जो बच्चा था वो जिंदा ठहरा। जरा सोचिये। इस देश को किसके हवाले किया जाये। अन्ना हजारे के, अरविंद केजरीवाल, बाबा रामदेव, नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी या फिर नीतीश कुमार के जिन्होंने अपने बिहार रेजिमेंट के शहीद परिवारों को रोता-बिलखता छोड़ गए। या फिर क्रिकेट को पैसे से खरीदने वालों के या उस आत्म बलिदान और स्वाभिमान के रंगों में दौड़ते रक्षकों के हाथ जिन्हें हम नमन करना भी भूलते जा रहे।

साधो, इ मुरदन के देश में सच मानो –
ऐसे लेने से तो है जान का देना अच्छा
क्या जिए गर जिए अहसान किसी का लेकर।

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