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मेरी शान-ए-फकीरी सलामत रहे

sach mano to
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दिल्ली में सरकार बनाने की सौदेबाजी। पाकिस्तान से फलों के राजा आम की मिलती सौगात। यूनिसेफ की हिडेन इन प्लेन साइट की चैंकाती रिपोर्ट। सिंहासन के लिए मुसलमानों के खिलाफ चूभते, नफरती शब्दवाण। सरकारी कर्मी से जूते का फीता बंधवाते राजनाथ सिंह। यही है, मोदी की छवि का भरोसा। सेना की जवानियत। जिसके भरोसे आज जम्मू-कश्मीर जिंदा है। धार्मिक वैमनस्यता, उन्माद, नफरत, मजहबी रिसाव दरों-दीवार में यूं बावस्त है मानो, पडोसियों पर शक, भरोसा नहीं जताने, टिकने की मजबूरी सामने। चारों दिशाएं, हर धर्म में सिमटते, बंटते वहीं पर सूखते, लाचार, हताश। जहां, ईसाइयों पर धर्म परिवर्तन का खतरा। सिखों को हक मांगने पर उनकी फिल्मों तक पर लगती पाबंदी। मुसलमानों पर आतंकी होने का शक, लगता ठप्पा। हिंदुओं के आगे संस्कृति, संस्कार, रस्म निभाने, बचाने की मजबूरी। मुंबई में गणपति की पूजा करते हिंदू-मुसलमान और विसर्जन को कतार में खडे खुद भगवान। नतीजा, हिंदू,मुस्लिम, सिख, ईसाई को हम वतन, ताकत, ईमान, धर्म समझने, मानने वाला देश ही खुद दोहारे पर विकृत, अमर्यादित मानसिकता के बीच इंडियन होने का सबूत, वजूद तलाश रहा। लगातार, बार-बार भाजपा के रहनुमा देश को हिंदू राष्टृ् बनाने की राह पर आगे बढाने, ले जाने की जिद में मुस्लिम होने के मतलब को बहकाते मतलब साफ करते कि चंद्रगुप्त मौर्य की तरह उनकी बेटी लाएंगे। अब कोई जोधा नहीं जाएगी अकबर के पास। मानो, साफ, स्वच्छ शब्द हो लव जेहाद और धार्मिक चोला वाले इसे हिंदू संस्कृति को नष्ट करने वाला वैश्विक साजिश मान रहे हों। वहीं एक मौलाना, लव जेहाद में शामिल मुस्लिम युवकों को मार देने का हुक्म सुनाते। हालात यही, कराची का दुबला-पतला शख्स, अधबुझे सिगार के आधे हिस्से से कश लेता वीरान रूवाई, धीरता समेटे, परिस्थिति से जख्म, हार खाए, संयास से बस एक रन दूर आडवाणी भाजपा को राज-काज योग्य बनाते। राजनैतिक ंिहंदू के त्यागे जा चुके भगवान को सभ्यता के पुरातत्व स्थलों से उठाकर मतदान केंद्रों के ऐन बाहर स्थापित करते वहीं से दरकिनार होते। वहीं से इसे लपकते अमित शाह, योगी आदित्यनाथ उसे जिंदा करते, कहते मुगलों के समय निकलती थी तलवार अब चलेगा सिर्फ बटन दबाने से काम, दुर्गंध फैला रहे। निसंदेह, दंगों की फेहरिस्त देश में लंबी है। मगर, वोट में तब्दील, गोल यह अब तय तरीकों से होने लगा है। जहां, मुज्जफरपुर दंगे की सच, मानवता के खून से निकले, स्याह अमित शाह भाजपा के अध्यक्ष बनते, अपमान का बदला लेने को मतदाताओं को उकसाते भाजपा की पांच साला जीत के सबसे बडे नायक बनते, उभरते, ताजपोशी कराते सामने हैं।वैसे भी, समूचा उत्तर प्रदेश ही मुस्लिम विरोधी जमीं तलाशने, तैयार करने में फिलहाल जुटा लगा, पडा है। यहां तक, वहां हिंदुत्व की पौध लगाने को सिंचाई तक हो गयी। भडकाउ भाषण, मुस्लिमों को नीचा दिखाने की होड, कभी पुचकारने, गले लगाने वहीं से भाग जाने, पाकिस्तान में बसने, रहने का हुक्म सुनाने, दंगा के लिए दोषी ठहराने की अदालत सरीखे। पाकिस्तान छोटा भाई से लेकर ठाकुरद्वारा तक में कांठ से बदला लेने की प्रवृति यहीं की उपज। ऐसे में, सपा के शकुनि मोहम्मद आजम खा की वजह से अल्पसंख्यक यहां कल्याण कम,नुकसान ज्यादा होता देख, भोग रहे। भले, बेनी प्रसाद को राहुल के नेतृत्व में कोई खोट, कोई एतराज नहीं दिखे, मगर जमीं वही है जहां से दिग्विजय सरीके बुजुर्गवादी कांग्रेसियों पर निशाना साधा, लगा है। या राहुल को मंदिर से निकलने वाला हर शख्स दुष्कर्मी यहीं की धरती पर आते ही लगता है। या फिर, आजम खा अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिलाने पर आमादा भाजपाई राज्यपाल राम नाइक के हाथों किरकिरी करवाते यहीं मिले हों। करहल उपचुनाव के बहाने योगी आदित्यराज मुस्लिम बेटियों को चंद्रगुप्त मौर्य की तरह उठा लेने की धमकी देते, लखनउ व मुरादाबाद में धिक्कारते। लव जेहाद पर आरएसएस के चिपके पोस्टर से ध्यान बंटाते कि अब कोई जोधा अकबर के पास नहीं जाएगी से दुष्कर्म तक की नयी परिभाषा देते, मुलायम राज में शकुनि के चलते महाभारत को आमंत्रित करते यही मिल रहे। वैसे भी, गोधरा की उपज शाह व योगी के लिए उन्मादी जुनून में दंगों के अपमान का बदला लेने, बहकावे, बहकाने की राजनीति कोई नयी बात नहीं। कुछ नया है तो वह, मोदी की छूट, राजनाथ के जूता प्रकरण पर चुप्पी। यही वजह है। यूपी खासकर पश्चिमी यूपी के सम्मान के लिए मुसलमानों को सबक सिखाने, उन्हें बेइज्जत करने, उनसे लडाई, जेहादी जंग लडने की हिमाकत करते शाह व योगी को सिर्फ कमल के निशान ही दिख रहे। तुर्रा यह, मोदी का वो मुस्कुराकर कहना, मुसलमानों को हमसे कोई खतरा नहीं। वो पास आकर तो देखें। साफ संकेत देते,इस बार दंगा बहुत बडा था, अच्छी होगी फसल मतदान की। हुआ भी, मुज्जफरपुर की तपती खून से भींगी जमीन ने अमित शाह की छवि ही खलनायक से नायक तक की बना डाली। मोदी की छवि का ही भरोसा, विकास व स्थिरता के बदौलत बिना किसी चेहरे के ही 14 सालों के राज्य के इतिहास में पहली बार झारखंड में चुनाव जीतने की तैयारी हो रही है या वहां के विधायकों के लगातार बीजेपी में शामिल होने का फलसफा कि चुनाव से पहले ही छोटे दलों की नाव पर सवारी करने को भाजपा बेचैन है। तख्त तो दिल्ली की चाहिए। जिसके लिए शीला दीक्षित से सौदा भी करना पडे तो हर्ज नहीं। या फिर, चैदह करोड में बिकते आम आदमी पार्टी के दिनेश मोहनिया को खरीदते प्रदेश उपाध्यक्ष शेर सिंह डागर भले दलील दें। सच्चाई छुप नहीं सकती।
सीमा पर गोलीबारी, पाक में बिगडते हालात, कुषवाहा के लारीबाग इलाके में भीषण मुठभेड, लश्कर-ए-तोएबा के दुर्दांत कमांडर उमर भटृटी को मार गिराते भारतीय सैनिकों को खुद पाक में तख्ता पलट के खतरों के बीच वहां के पीएम नवाज शरीफ के मोदी को भेजे आम की कीमत का अंदाजा नहीं जिसके भीतर का रस, एक-एक रेसा मासूम बच्चियों की चीत्कार से गठिला, स्वादिष्ट दिख, लग रहा जिसे अभी-अभी बगदादी के कठमुल्लों ने हवस का शिकार बनाते बेच दिया है। पहले हाफिज, फिर बगदादी, पूर्व राष्टपति मुशर्रफ, जवाहिरी तक की मोदी के इस्लाम व मुसलमान विरोधी छवि बनाने की कोशिश भले हिंदूवादी चेहरे को नागवार गुजरे मगर उनके पार्टी के अंदर की पूरी ताकत जिस बीज को बोने में जुटी, लगी काटने की कोशिश में है निसंदेह देश के लिए सुकून भरा नहीं। लिहाजा, बस चंद मोहलत में सरकार के चेहरे गोधरा की आग सरीके में जरूर पक, झुलस, जल जाएंगे। कारण, बहकते मोदी के सिपहसालारों पर कहीं कोई शिकंजा कसता दिख भी नहीं रहा। छतीसगढ के बाद बिहार उपचुनाव में भाजपा को जिस नुकसान का अंदाजा लगा वह महज एक संकेत है। स्टिंग आपरेशन पर मोदी की चुप्पी व हरियाणा, झारखंड व मुंबई में मंच से सीएम को दरकिनार कर खुद वाहवाही बंटोरना उन्हें कितना नुकसान पहुंचा सकेगा यह आगामी विधानसभा की लकीरों के बीच अबकी बार यूपी की बारी में 13 सिंतबर को कैद होता साफ दिख रहा। फिलवक्त, अरविंद का बौखलाना, फिर से दिल्ली में चुनाव कराने की जिद में सत्ता खोने का अफसोस, खांसना तो ठीक मगर बडबोलापन, सरकार बनाने के लिए खरीद-फरोख्त, जोड-तोड उस सरकार के लिए शोभोचित नहीं जिसे पांच साला सत्ता नसीब हो। हकीकत यही, आगामी विश्वकप से पूर्व क्रिकेट खिलाडियों को विषकन्याओं से बचाने की सलाह अभी से देते न्यूजीलैंड पुलिस भारत, श्रीलंका व पाकिस्तानी खिलाडी पर विशेष नजर रखे हुए है। वहीं, यूनिसेफ के चेताने के बाद भी देश जागने को तैयार नहीं है। यहां, 77 फीसदी लडकी, युवती पति, साथियों व परिचितों के हाथों शारीरिक प्रताडना, यातना, हिंसा भोग रही। और सरकार अलकायदा सरगना जवाहिरी की ताजा वीडियो से मोदी को बचाने, इस्लाम विरोधी छवि से उबारने में जुटी, लगी, पडी है। काश! पहले घर की सफाई हो जाती? एक दिनी सजा काट चुके मोदी सरकार में राज्यपाल तो नहीं बनाए जाते। कारण, देश की जिस गंगा-यमुनी तरजीह में तिरंगा की संस्कार, उसकी सरलता, समतुल्य भाव, कर्तव्य, समर्पण छुपी है वह, शान-ए-फकीरी तो हर हाल में सलामत रहे…रहनी चाहिए कि नहीं रहनी चाहिए?

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